रविवार, 7 अगस्त 2011

मन मीता, मन दुश्मना |


मन में

म भी न भी

फिर भी मन

मनमानी

माया कारण चंचला

इत उत

हर पल जाहि |



मन

मीता

मन दुश्मना

मन के

सब अधीन

मन से

जो बेमन हुआ

वो ही बस

स्वाधीन |



मन

मंदिर

मन देवता

फिर भी

मन बदनाम

मन ही मन

मैं , मैं करे

माया के आधीन |



मन

रामा

मन रावणा

मन साधु

मन चोर

मन के

कितने रूप हैं

मन पर

किसका ज़ोर |



मन

माया का मीत है

काया संग

करे प्रीत,

मोह कारण

सोता रहे

कुंभकरण की रीत |



मन

दुविधा में फँस रहा

दुख , सुख

से घबराए

ऐसी करनी

ना करे

दुख कभी

निकट ना आए |



मन

पानी का बुदबुदा

मन पर्वत का चोट

मन

पल में

करता पतन

मन जाग

बुद्ध बन जाए |



राजीव जायसवाल

२७/१०/२०१०



1 टिप्पणी:

  1. बेहतरीन।
    --------
    कल 08/08/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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