शनिवार, 13 अगस्त 2011

समर्पण |

तुम मुझ से

दूर कितने हो गये हो

बहुत नज़दीक होकर भी

कहीं पर खो गये हो |

कहो क्या बात

क्या मुझ से खफा हो

कोई जो ग़लती की हो

तो सज़ा दो

मेरा है कौन

बिन तुम बिन जहाँ में

तुम्हारे बिन करूँगी क्या

बता दो |



समर्पित तुम को तन मन

कर दिया था

समर्पित तुम को

जीवन कर दिया था

करूँ अब क्या समर्पण

ये बता दो

मुझे किस बात की

देते सज़ा हो |



मेरे मंदिर में

तुम्हारी ही है मूरत

मेरे मन में

तुम्हारी ही है सूरत

मेरी सब पूजा आरती

बस तुम ही हो

कोई प्रसाद मत दो

ना भले तुम

मगर मंदिर से

मूरत मत निकालो |



मुझे चाहो , ना चाहो

गम नहीं है

मेरी रुसवाइयां

कुछ कम नहीं हैं

मेरी हसरत में

चाहत बस तुम्हारी

मेरी चाहत में

हसरत बस तुम्हारी

मुझे एक बार बस

हंस कर निहारो |



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