जब तक
साँस
चले ये काया ,
साँस गई
भइ खाक ये काया |
काहे मोह करे
रे
मूढा ,
साँस गई
भई देह ये कूड़ा |
नित भटके
इत उत को भागा ,
साँस गई
जली देह ये आगा |
सुंदर देह
करे बेचैना
साँस गई
भए बंद ये नयना {
जब लग साँस
तभी तक नाता ,
साँस गई
कोई मात , ना भ्राता |
राजीव
21/02.2013
साँस , साँस
सिमर गोबिंद ,
मानव मूढ़ ,
भाया क्यूँ अंध |