शनिवार, 13 अगस्त 2011

मेरे दोस्त |

मेरे दोस्त

तुम्हारे आँखों की कोरों में

चमकते आँसुओं को

मैं देख सकता हूँ

पर उन्हें पोंछने की सामर्थ्य

मुझ में नहीं है,

इत्र से महकता मेरा कीमती रुमाल

तुम्हारे मैल कुचैले आँसुओं को

पोंछने के लिए तो नहीं है |

तुम्हें याद होगा

तुम्हारे यौवन की दोपहरी

मेरे घर की दहलीज़ पर

आकर रुक गयी थी

अपने तरकश के सभी विषैले बाणो से

मैने तुम्हारे संयम की परीक्षा ली थी ,

घोल दिया था , तुम्हारे शरीर में

सभ्यता और संस्कृति का जहर |



मेरे दोस्त

तुम येशू नहीं हो

लेकिन मैं जानता हूँ

की सलीब पर लगे रक्तिम छींटे

तुम्हारे रक़त के हैं

तुम्हारे वक्ष स्थल के कॅन्वस पर

अभी भी चित्रित है

मेरी अमानुषिकताओं के प्रमाण

मैं जानता हूँ

तुम्हारे अंतर का ज्वालामुखी

कभी भी धधक सकता है

तुम्हारी कटुता का गर्म लावा

मुझे आत्मसात कर सकता है

पूंजीवाद के कितने ही दुर्ग

एक के बाद एक

ढहते देख चुका हूँ

मुझे तुम से सहानुभूति है

केवल सहानुभूति

सहयता की अपेक्षा मुझ से करना

तुम्हारी मूर्खता है

तुम्हारी दीनता के कटोरे में

दो तीन मुट्ठी आटा तो मैं डाल सकता हूँ

ताकि उसे खा कर

तुम मेरी दया का गुणगान करते रहो |



मेरे दोस्त

सुना है

भूख से इंसान मर सकता है

लेकिन मैं तुम्हें

मरने नहीं दूँगा

क्योंकि की तुम्हारे शरीर के धरातल पर ही टिकी है

मेरे महल की आधारशिला

तुम्हारे चेहरे की झुर्रीयों में

समय के क्रूर हाथो ने

दीनता की जो करूण गाथा लिख दी है

उसे मैं पढ़ तो सकता हूँ

लेकिन पढ़ना नहीं चाहता

क्योंकि मुझे डर है

की उसे पढ़ने के बाद

मैं नक्सलवाद के

घने जंगलों में खो जाउँगा |

राजीव जायसवाल

देश को आज़ाद हुए ५७ साल हो गये हैं, लेकिन क्या हम को वही स्वराज मिला है, जिस के लिए कितने ही लोगों ने हंसते हंसते अपने प्राणो का उत्सर्ग कर दिया, आज भी ग़रीबी है, लाचारी है, बेबसी है, भुखमरी है |मएरी यह रचना हमारी उस मानसिकता को दिखाता है, जिस में हम क्रांति की, समाजवाद की, समतावाद की बड़ी बड़ी बातें वातानुकूलित कमरों में बैठ कर करते हैं |

राजीव जायसवाल








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