कहीं छुप जाने का मन होता है
इतनी कमियाँ हैं , ख़ुदाया मुझ में
खुद से शरमाने का मन होता है |
मेरी सब शायरी पे मरते हैं
मेरी तारीफ भी सब करते हैं
मेरे अंतर की शरारत देखो
अपनी शोहरत से भी मैं जलता हूँ |
सब समझते हैं , मैं फरिश्ता हूँ
कैसा इंसान भला दिखता हूँ
जो छुपाता हूँ,वो जो दिख जाए
सोच दुनिया की सब बदल जाए |
हर शेर वाह के काबिल नहीं होता
आह कहना , मगर मुमकिन नहीं होता
तहज़ीबे दुनिया का दस्तूर यही होता है
मन में कुछ और, बाहर कुछ और होता है |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें