आरती |
प्रेम की मंदाकिनी
बह रही झर झर
हिमालय बन गया ,
मेरा शिखर
अंतःकरण मेरा
गंगोत्री बन गया
गंगा बही अविरल |
उदित हुआ सूर्य
मम आकाश में ,
किरणें धवल उज्जवल
आलोकित मन हुआ
तन हुआ शीतल |
दीप सब जलने लगे
मंदिर मेरे ,
अंतर मेरे
ज्यों शंख से बजने लगे ,
नभ के तारे
दीप बन सजने लगे ,
मौन में
हम आरती करने लगे |
राजीव जायसवाल
११/०८/२०११
वाह , मन आनंदित और प्रफ्फुलित हो गया .........आभार
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