रात भर |
रात भर
मैं भी जागा
तुम भी जागी
रात भर
राह देखी
तुम ने मेरी
मैं तुम्हारी,
तुम ना आईं
मैं भी तुम तक
जा ना पाया
वक़्त दोनो ने गवाया
रात भर |
रात भर
आग भड़की,
बुझ गयी,
राख बनकर |
रात भर
बात निकली,
तुम ने भी की
हम ने भी की.
ना मेरी
तुम तलक पहुँची,
ना तेरी
मुझ तलक पहुँची,
रात भर |
राजीव जायसवाल
०९/०८/२०११
बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया सर ।
जवाब देंहटाएंसादर
बढ़िया ....अच्छा लगा आपकी यह रचना पढ़ कर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ....मन की वेदना ...बहुत अच्छे से दर्शायी है ...!!
जवाब देंहटाएंरात भर
जवाब देंहटाएंआग भड़की,
बुझ गयी,
राख बनकर |
रात भर
बात निकली,
तुम ने भी की
हम ने भी की.
ना मेरी
तुम तलक पहुँची,
ना तेरी
मुझ तलक पहुँची,
रात भर |
waah bahut khobb rat bhi beet gayi aur baat bhi .....sunder prastuti .aabhar
शुक्रिया, वंदना जी |
जवाब देंहटाएंशुक्रिया, सदा |
जवाब देंहटाएंशुक्रिया, मीनाक्षी जी |
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, यशवन्त जी |
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, निधि जी, मेरी अन्य रचनाओं पर भी अपनी राय दें |
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