सोमवार, 22 अगस्त 2011

स्वपन |

जब मैं सोता हूँ

मेरा मन जग जाता है,

मेरा अंतर्मन

मुझ को स्वपन दिखाता है,

जग एक सपना

सपने में सपना,

भागा दौड़ी, धूम धड़ाका

सब दिखलाता है,

जब मैं सोता हूँ

मेरा मन जग जाता है |

कभी नींद में डर जाता हूँ

जाने कौन डगर जाता हूँ,

कभी कभी मैं मर जाता हूँ

मरे हुओ को पा जाता हूँ,

जाने कौन जगह जाता हूँ

भली बुरी बातें करता हूँ,

जाने मैं क्या क्या करता हूँ

मैं हंसता हूँ, मैं रोता हूँ,

किस दुनिया में खो जाता हूँ,

अंतर्मन मेरा मुझ को

तरह तरह के दृश्य दिखाता है,

जब मैं सोता हूँ,

मेरा मन जग जाता है

जाती रात , सुबह आती है

जाती सुबह, धूप आती है

मेरे मन की पीड़ा भी बस

साथ साथ बढ़ती जाती है

इस जीवन का मतलब क्या है

जग सपना है

तो सच क्या है,

जीना क्या है,मरना क्या है ,

ऐसी बातों से अंतर्मन

भरमा जाता है,

जब मैं सोता हूँ

मेरा मन जग जाता है |

स्वपन मुझे हमेशा हैरान करते हैं, सपनो की दुनिया बहुत निराली होती है|

मेरी यह कविता सपनो की इसी दुनिया पर आधारित है|

राजीव जायसवाल




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