कहाँ गये वो
कल तक थे जो
साथ हमारे,
छोड़ गये क्यों
साथ हमारे |
बचपन से यौवन तक
पकड़े हाथ हमारे
दिए सहारे,
छोड़ गये क्यों
बीच सफ़र में,
मीत हमारे,सखा हमारे |
जिन चेहरों को
हम तकते थे
सांझ सकारे,
नयन हमारे
देख सके ना
उन चेहरों को
बीत गये दिन
कितने सारे |
दिन बीते
दिन पर दिन बीते
तुम बिन सब दिन
रीते रीते,
आई होली, गयी दीवाली
अपना अंगना
खाली खाली |
कहाँ गये तुम
ना आने को,
नयन हमारे
रो रो हारे,
मीत हमारे, सखा हमारे,
राह तकत हैं
सांझ सकारे |
जीते क्यों हैं
मरते क्यों हैं
सब मरने से
डरते क्यों हैं.
मिलते और बिछड़ते क्यों हैं
बनते और बिगड़ते क्यों हैं |
इस जीवन का
मतलब क्या है
सब कुछ क्यों
बेमतलब सा है
कौन खुदा है
कौन विधाता
सब सृष्टि को
कौन बनाता
राजीव जायसवाल
मेरी यह कविता मेरी दादी, चाचा जी और चाची को समर्पित है, जिनके प्यार से मेरा बचपन गुलज़ार रहा , लेकिन जो अब इस दुनिया में नहीं हैं |
२४/०६/२०१०
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