शनिवार, 27 अगस्त 2011

इस शहर का अजब ही दस्तूर है |

इस शहर का अजब ही दस्तूर है
जो भी आता यहाँ पर
वो जाता ज़रूर है
उन को दरखतो शाख की चिंता लगी हुई
हर मोड़ पे है एक
काफिले जनाज़ा ज़रूर है |

कितने मेरे अपने यहाँ
मुझ से बिछड गये
कितने यहाँ बरसों जिए
एक रोज मर गए
कितने बुलंद हों
यहाँ टूटा गरूर है
जो भी यहाँ पैदा हुआ
मरता ज़रूर है |

वो रोज नए कितने ही
सपने सजाते थे,
चलते थे बहुत झूम कर
हंसते थे, गाते थे,
एक रोज ये क्या हो गया
वो ना मुस्कुराते हैं,
क्यों इस तरह से सो गए
ना जाग पाते हैं,
ऐसी भी नींद क्या हुई
कितना सताते हैं,
जो हर घड़ी हँसाते थे
क्यों अब रुलाते हैं ?

कोई तो हमें
शहर का दस्तूर बताए
ये कैसा तमाशा है
कोई तो बताए,
किस किस घड़ी जाना किसे
तय करता कौन है,
जिस की ये मिल्कियत है
मलिक वो कौन है ?

राजीव जायसवाल
THIS POEM IS PRESENTED BELOW IN ROMAN SCRIPT------
IS SAHAR KA AJAB DASTUR HAI
JO BHI YAHAN PAR ATA HAI
VO JATA JARUR HAI
TUM KO DARAKHTO SAKH KI
CHINTA LAGI HUI
HUR MOD PAR HAI EK
KAFILE JANAJA JARUR HAI.

KITNE MERE APNE YAHAN
MUJH SE BICHAR GAYE
KITNE YAHAN BARSON JIYE
EK ROJ MAR GAYE
KITNE BULAND HO
YAHAN TUTA GARUR HAI
JO BHI YAHAN PAIDA HUA
MARTA JARUR HAI.

VO ROJ NAYE KITNE HI
SAPNE SAJATE THE
CHALTE THE BAHUT JHUM KE
HANSTE THE GATEY THE
EK ROJ YE KYA HO GAYA
NA VO MUSKURATE HAIN
VO IS TARHA SE SO GAYE
NA JAG PATE HAIN
AISI BHI NIND KYA HUI
KITNA SATATE HAIN
JO HAR GHADI HANSATE THE
VO AB KYON RULATE HAIN.

KOI TO HUMEIN SAHAR KA
DASTUR BATAE
YE KAISA TAMASHA HAI
KOI HUM KO SAMJHAE
KI KIS GHADI JANA KISE
TAY KARTA KAUN HAI
JIS SE HAREK PUCHTA YE BAT
MALIK VO KAUN HAI  ?

RAJIV JAYASWAL
<photo id=1></photo>

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें