प्राण मेरे
तुम मेरे हर अंश में
समाए हो कभी से
जब से मेरे
चैतन्य ने खोली थी आँखें |
हर दिशा में
है तुम्हारी लालिमा ही,
मेरे अंतर में
बसे हो प्रेम बनकर,
आँख का काजल है
तुम्हारी कालीमा ही |
आदि से आदिम पुरुष में
तुम ही समाए थे,
युग युगों से
नर नारी के
संसर्ग भी
तुम ने कराए थे |
प्राण मेरे
गर्भ बनकर
मेरे संग संग
तुम ही रहे थे
बालपन में
कृष्ण संग
माखन चुराए थे |
तुम ही
बनकर वासना
यौवन सुख सजाए थे|
प्राण मेरे
सैथिल्य होती देह में
तुम ही रहे थे
काँपते हाथों में
तुम्ही थे
जर्जरित काया में
थी तुम्हारी ही
पिघलती काली छाया
मौत आने पर
मेरे संग तुम गये थे
प्राण मेरे |
प्राण मेरे
कितनी देहों में
रहे तुम साथ मेरे
मेरे सब सुख दुख
सहे तुम ने,
हर व्यथा को
पी गये चुपचाप तुम
प्राण मेरे |
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