शनिवार, 13 अगस्त 2011

हम को सब कुछ अजीब लगता है |

मुझ को सब कुछ अजीब लगता है

कोई दिल के करीब लगता है,

और कोई मीलों दूर लगता है,

कोई मिल कर भी मिल नही पाता,

बिन मिले कोई दिल में बसता है,

मुझ को सब कुछ--------



लोग कहते है, कुछ नहीं अपना

सच नही कुछ भी, जग है एक सपना,

सपना कितना हसीन लगता है,

कोई आता है, कोई जाता है,

क्यों कोई दिल को बहुत भाता है,

मुझ को सब कुछ----



उन को देखे, गुजर गये बरसों

क्यों ये लगता है, मिले कल परसों,

अब तो वो भी बदल गये होंगे,

हम को वो भूल भी गये होंगे,

फिर भी क्यों इंतज़ार लगता है,

जाग गया सोया प्यार लगता है,

मुझ को सब -------



हम मुक़द्दर से यूँही डरते रहे

कल क्या होगा की फ़िक्र करते रहे,

जो भी होना था, हो गया वो भी,

पहले जिंदा थे, जिंदा हैं अब भी,

क्यों ये दिल बेवज़ह धड़कता रहा,

प्यार को एक गुनाह समझता रहा,

मुझ को सब -----

राजीव जायसवाल

३१/०५/२०१०

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