आँख ना खुल पाएगी
नब्ज़ ना चल पाएगी
हाथ ना उठ पाएगा
देह भी जल जाएगी
ये एक दिन होना यक़ीनन है
हमारे साथ,
तब भी भागे फिरते हैं
खुद पर गरूर करते हैं
खुदा कुछ भी नहीं है
सभी कुछ हम ही है
कहते फिरते हैं,
कब अकल हम को आएगी
जब आँख ना खुल पाएगी
नब्ज़ ना चल पाएगी
हाथ ना उठ पाएगा
देह भी जल जाएगी |
कैसे कह दूं ,
झूठ है ये
कुछ सच नहीं है,
बहुत सी बात होती है
समझ लेते हैं होंगी
पर ना होती हैं,
मगर ये बात सच है
कि सुबह ऐसी आएगी
जब आँख ना खुल पाएगी
नब्ज़ ना चल पाएगी
हाथ ना उठ पाएगा
देह भी जल जाएगी |
क्या भरोसा
देह फिर मिल पाएगी
या कि ना मिल पाएगी
जन्म लेंगे फिर से हम
या बारी फिर ना आएगी
तब भी
इस को , उस को
बोलते हैं
हम सभी कुछ हैं
जैसे हमको
मौत छू ना पाएगी
हस्ती ना मिट पाएगी
क्या अक़्ल उस दिन आएगी
जब
आँख ना खुल पाएगी
नब्ज़ ना चल पाएगी
हाथ ना उठ पाएगा
देह भी जल जाएगी
राजीव जायसवाल
माफी चाहता हूँ, मेरी यह रचना कुछ लोगों को शायद बहुत कठोर लगे, लेकिन मेरे दोस्त जीवन की कड़वी सच्चाई यही है, एक दिन ऐसा हमारे जीवन में अवश्य आना है, जो जीवन का अंतिम दिन होगा |
मेरा इस रचना को लिखने का उद्देश्य किसी को डराना नहीं है, बल्कि सिर्फ़ यह कहना है कि हम अपने जीवन को सार्थकता से जिएं |
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