गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

पुनि पुनि जनमं -पुनि पुनि मरणं |


अब मन है 
मैं नव शरीर पा ऊँ ,
सुन्दर , कोमल 
बच्चा बन ,
जन्म पुनः पा ऊँ  |
नौ माहा 
फिर गर्भ में  लट कूं ,
फिर बाहर आ ऊँ ,
माता का अमृत स्नेह मिले 
फिर दुलराया जा ऊँ |

उठ गिरता 
मैं चलूँ दोबारा ,
नव अंगना  पा ऊँ ,,
खेल खिलोने मिले दोबारा
फिर से तुतला ऊँ  |

फिर से पढूं
पढाई सारी
फिर यौवन पा ऊँ
फिर से प्रेम करूँ दोबारा 
आलिंगन पा ऊँ |

नव यौवन , नव देह मिलेगी 
नव जीवन होगा ,
इस जीवन के संबंधों से 
बंध ख़तम होगा |

फिर सोचूं 
मैं तो जाऊंगा ,
प्रियों का क्या होगा
मेरी पत्नी और बच्चों का 
हाल बुरा होगा ,
मुझ बिन कैसे रह पाएँगे
क्या मेरा दुःख 
सह पाएँगे |

फिर सोचूं 
कितने जन्मों से 
देह बदलता आया 
कभी किसी घर 
कभी किसी घर
नव जीवन पाया |

मेरे ऊँ जन्मों के साथी
मुझ बिन
तरसे होंगे ,
न जाने 
कितने प्रिय जन
मुझ से बिछड़े होंगे |

पुनि  पुनि  जनमं
पुनि पुनि मरणं
जन्म मरण का आवागमनम 
कब तक यूँही चलेगा  ,
सब को छल ने वाला छलिया 
कब तक यूँही छलेगा |

राजीव
१०/१०/२०१२

पुनि पुनि जनमं 
पुनि पुनि मरणं
पुनि पुनि जननि 
जठरा शयनं 
एह संसारे बहु दुश्तारे 
त्राहि मुरारे |
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शंकराचार्य 



3 टिप्‍पणियां:

  1. कविता के शब्दों का आकलन संभव नहीं है क्योंकि श्रेष्ठतम है ...मंकी बलवती इच्छा जो प्रार्थना के करीब है,,,उसके लिए जहां इश्वर सच्ची है ,,,,अति सुंदर

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