कौन था वो
छोटा सा
चार पाँव चलता था
गिरता था
संभलता था
माता की गोदी में
रोता और मंचलता था
मैं ही था |
कौन था वो,
सुबह, स्कूल प्रार्थना में
गाता था,
साथियों के साथ
रोज पहाड़े सुनाता था,
मैं ही था |
कौन था वो,
हो के बड़ा
सुंदरता तकता था,
प्रेमिका के ख्यालों में
कविताएँ लिखता था,
मैं ही था |
कौन था वो,
प्रियतमा को
घर ले के आया था,
सारी रात जगता था,
एक पल ना
थकता था,
मैं ही था |
कौन था वो,
पैसा और पैसा
कमाता था,
कभी इधर, कभी उधर
चक्कर लगाता था,
शोहरत के, ताक़त के
सपने सजाता था,
मैं ही था |
कौन था वो
पहले सी ताक़त ना पाता था,
थोड़ी सी मेहनत से
ज़्यादा थक जाता था,
हसरतें हज़ारों थीं
कर कुछ ना पाता था,
मैं ही था |
कौन था वो
जीवन भर
माया से, काया से,
दौलत से, शोहरत से
मुक्ति ना पाता था,
एक दिवस
छोड़ सभी,
दूर चला जाता था,
मैं ही था |
राजीव जायसवाल
२७/०३.२०११
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