बुधवार, 17 अगस्त 2011

क्या पता ?

सच है क्या

और झूठ क्या है

क्या पता,

क्या खुदा है

या नही है

क्या पता,

हम अमर है

या हैं नश्वर

क्या पता,

जन्म लेंगे फिर

या ख़तम हो जाएगा

नामो निशान |



कोई ताक़त है

नहीं है,

या सभी कुछ

स्व चालित है,

देखता है कोई

हमको हर घड़ी,

सब दिलासे हैं

जमाने के

या कुछ भी नहीं है,

क्या पता

सच है क्या,

और झूठ क्या है

क्या पता |



हम अकेले हैं

या कहीं कोई और है,

इतने बड़े

संसार में,

एक धरती ही

मिली

जीवन को बसने के लिए

या है कोई जीवन

किसी ओर भी

नक्षत्रा पर,

ये क्या पता

सच है क्या

और झूठ क्या है

क्या पता |



जो लिखा है

पोथियों में धर्म की

वो सच भी हैं,

या झूठ हैं

या किसी नादान

पंडित की

समझ की भूल हैं,

ये क्या पता

सच है क्या

और झूठ क्या है

क्या पता |



आदमी ,

आदम की है औलाद

या है

बंदरों की

झुटे हैं

सब के ये ख्यालत

ये किस को पता है

चाँद पर पहुँचा

भी है इंसान

या सब झूठ है

सच है क्या

और झूठ क्या है

क्या पता |

RAJIV JAYASWAL



THERE ARE MANY THING INL LIFE ABOUT WHOM WE ARE NEVER SURE, WHATEVER WE KNOW ABOUT THOSE THINGS ARE ON THE BASIS OF ASSUMPTIONS.

THOUGH HUMAN MIND HAS UNLIMITED CAPACITY BUT WE KNOW LITTLE ABOUT MANY SECRETS OF LIFE, UNIVERSE , LIFE AND DEATH.

MY THIS POEM REFLECTS THIS UNCERTAINITY.

20/05/2010

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