शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

धरती का स्वयंबर |


धरती के स्वयंबर में भाग लेने आए हैं

आज नीले अंबर पे, मेघ काले छाए हैं

पवन बहे तेज़, रही वायु को भेज

कहे तारों के देश, बना फूलों की सेज



सूरज उदास चला, मुख को छुपाए

कहे धरती से, हाए कहे मुझ को जलाए

विरह से तपता तन, आग हुआ जाए

चला धरती से दूर, लिए मन में एक हाए |



देख सूरज उदास, कहा अंबर ने आज

काहे मन को जलाता है, आग हुआ जाता है

चल के तो देख, ज़रा स्वयंबर का खेल

कभी धरती के साथ हुआ मेघों का मेल |



हुआ स्वयंबर आरंभ, टूटा मेघों का दंभ

जो भी मन को लुभाए, वही धरती को भाए

देख मेघों का रंग, बोली धरती दबंग

नहीं करनी है शादी, मुझे काले के संग |



मेघ दुख से थर्राए, नैन आँसू भर लाए

टूटा मनवा का धीर, बहा नैनो से नीर

देख सूरज गंभीर हुआ, अंबर मुस्काए

विरही ही समझे है, विरही की पीर |



राजीव जायसवाल

1 टिप्पणी:

  1. हुआ स्वयंबर आरंभ, टूटा मेघों का दंभ
    जो भी मन को लुभाए, वही धरती को भाए
    देख मेघों का रंग, बोली धरती दबंग
    नहीं करनी है शादी, मुझे काले के संग |

    सुन्दर कल्पना शक्ति के साथ सुन्दर अभिव्यक्ति ...

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