शून्य
बहुत विशाल हो गया
मैं एक क्षण से
काल हो गया
नगर खो गया
शहर खो गया
दिशा खो गयी
दशा खो गयी
मेरी आत्मा
वृहत हो गयी
अंधकार का अंत हो गया
शून्य से मैं
अनंत हो गया |
चहूँ दिश
धवल प्रकाश हो गया
निशा काल का
नाश हो गया |
अंतर मेरा
शांत हो गया
मेरा लघु तन
कहीं खो गया |
ध्वनि खो गयी
सभी दिशाएँ
शान्त हो गयीं,
मधुर रागिनी
कहीं बज उठी |
ध्यान का कमल
मनस में खिला,
जल ठहर गया,
लहर ना उठी,
प्रभु की छवि
क्षणिक सी दिखी,
धरा पर जनम
सफल हो गया,
अहम खो गया
सभी पा लिया,
मेरी आत्मा को
परम मिल गया,
दोनो एक हुए
ब्रहम बन गया |
राजीव जायसवाल
१०/०९/२०१०
वाह अब और क्या चाहिये इसके बाद्।
जवाब देंहटाएंआज का आकर्षण बना है आपका ब्लोग है ज़ख्म पर और गर्भनाल पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से
जवाब देंहटाएंअवगत कराइयेगा । http://redrose-vandana.blogspot.com