शनिवार, 27 अगस्त 2011

GOD .

O GOD,
THY PRESENCE IS EVERYWHERE
HERE AND THERE
BUT NO ONE CARES
TO FEEL YOUR PRESENCE.
TO FEEL YOUR ESSENCE.

SOME DEFINE YOU AS UNDEFINABLE
SOME OTHERS TRY TO DEFY YOUR PRESENCE
IN THEIR ARROGANCE.

BUT O POWER GREAT
WHENEVER I MEDITATE
MY INNER VOICE TELLS
TO SEARCH MYSELF
TO FEEL YOUR PRESENCE
TO FEEL YOUR ESSENCE.

RAJIV JAYASWAL
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एक एक दिन को पकड़ लो |

एक एक दिन को पकड़ लो
बाहों में जकड लो
मुठी में बालू सा
फिसल फिसल जाता है
वक़्त गया वापिस ना आता है |

रोज सुबह जीते हैं
रात को मर जाते हैं
दिन के दावानल को
मेहनत के मेघ
भिगो जाते हैं
रात के सन्नाटे में
कोलाहल सपनों के
हम को जगा जाते हैं |

रोज नई आशाएँ
रोज नई चिंताएँ
गिर के संभल जाते हैं
फिर से फिसल  जाते हैं |

सुंदर से सुन्दर भी
शख़्श बदल जाते हैं
अक्श बदल जाते हैं,
पतझड़ की कौन कहे
सावन के मेघ कभी
जीवन की बगिया पे
बिजली गिरा जाते हैं
अगन लगा जाते हैं |

बचपन कब हुआ युवा
बूढ़ा हो जाता है
अर्थी बन भट्टी में
भस्म हुआ जाता है
जब तक
ये अंतर्मन जागता है
वक़्त निकल जाता है |


हर पल के
स्पंदन को छू लो
अगले पल
दिल की ये धड़कन
हो भी या ना भी हो
इस चिंता को भूलो
आशाओं के झूले में झूलो
उँची से उँची
तुम उँचाई को छू लो |

राजीव जायसवाल
THIS POEM IS PRESENTED BELOW IN ROMAN SCRIPT----
EK EK DIN KO PAKAD LO
BAHON MEIN JAKAD LO
MUTHHI MEIN BALU SA
FISAL FISAL JATA HAI
WAQT GAYA VAPIS NA ATA HAI.

ROJ SUBHA JITE HAIN
RAAT KO MAR JATE HAIN
DIN KE DAWANAL KO
MEHNAT KE MEGH
BHIGO JATE HAIN
RAAT KE SANNATE MEIN
KOLAHAL SAPNON KE
HUM KO JAGA JATE HAIN.

ROJ NAI ASHAIEN
ROJ NAI CHINTAEIN
GIR KE SAMBHAL JATE HAIN
PHIR SE PHISAL JATE HAIN.

SUDER SE SUNDER BHI
SAKSH BADAL JATE HAIN
AKSH BADAL JATE HAIN
PATJHAD KI KAUN KAHE
SAWAN KE MEGH KABHI
JIWAN KI BAGIYA PAR
BIJLI GIRA JATE HAIN
AGAN LAGA JATE HAIN.

BACHPAN KAB HUA YUVA
BUDHA HO JATA HAI
ARTHI BAN BHATTI MEIN
BHASM HUA JATA HAI
JAB TAK YE ANTARMAN JAGTA HAI
WAQT NIKAL JATA HAI.

HAR PAL KE SPANDAN KO CHU LO
AGLE PAL DIL KI YE DHADKAN
HO BHI YA NA BHI HO
IS CHINTA KO BHULO
ASHAON KE JHULE MEIN JHULO
UNCHI SE UNCHI
TUM UNCHAI KO CHU LO.
RAJIV JAYASWAL

इस शहर का अजब ही दस्तूर है |

इस शहर का अजब ही दस्तूर है
जो भी आता यहाँ पर
वो जाता ज़रूर है
उन को दरखतो शाख की चिंता लगी हुई
हर मोड़ पे है एक
काफिले जनाज़ा ज़रूर है |

कितने मेरे अपने यहाँ
मुझ से बिछड गये
कितने यहाँ बरसों जिए
एक रोज मर गए
कितने बुलंद हों
यहाँ टूटा गरूर है
जो भी यहाँ पैदा हुआ
मरता ज़रूर है |

वो रोज नए कितने ही
सपने सजाते थे,
चलते थे बहुत झूम कर
हंसते थे, गाते थे,
एक रोज ये क्या हो गया
वो ना मुस्कुराते हैं,
क्यों इस तरह से सो गए
ना जाग पाते हैं,
ऐसी भी नींद क्या हुई
कितना सताते हैं,
जो हर घड़ी हँसाते थे
क्यों अब रुलाते हैं ?

कोई तो हमें
शहर का दस्तूर बताए
ये कैसा तमाशा है
कोई तो बताए,
किस किस घड़ी जाना किसे
तय करता कौन है,
जिस की ये मिल्कियत है
मलिक वो कौन है ?

राजीव जायसवाल
THIS POEM IS PRESENTED BELOW IN ROMAN SCRIPT------
IS SAHAR KA AJAB DASTUR HAI
JO BHI YAHAN PAR ATA HAI
VO JATA JARUR HAI
TUM KO DARAKHTO SAKH KI
CHINTA LAGI HUI
HUR MOD PAR HAI EK
KAFILE JANAJA JARUR HAI.

KITNE MERE APNE YAHAN
MUJH SE BICHAR GAYE
KITNE YAHAN BARSON JIYE
EK ROJ MAR GAYE
KITNE BULAND HO
YAHAN TUTA GARUR HAI
JO BHI YAHAN PAIDA HUA
MARTA JARUR HAI.

VO ROJ NAYE KITNE HI
SAPNE SAJATE THE
CHALTE THE BAHUT JHUM KE
HANSTE THE GATEY THE
EK ROJ YE KYA HO GAYA
NA VO MUSKURATE HAIN
VO IS TARHA SE SO GAYE
NA JAG PATE HAIN
AISI BHI NIND KYA HUI
KITNA SATATE HAIN
JO HAR GHADI HANSATE THE
VO AB KYON RULATE HAIN.

KOI TO HUMEIN SAHAR KA
DASTUR BATAE
YE KAISA TAMASHA HAI
KOI HUM KO SAMJHAE
KI KIS GHADI JANA KISE
TAY KARTA KAUN HAI
JIS SE HAREK PUCHTA YE BAT
MALIK VO KAUN HAI  ?

RAJIV JAYASWAL
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मदिरालय |

केवल कुछ दिन
शेष रह गये
इस जीवन के
अब तो जी लो,
यौवन की
छलकी मदिरा है,
होंठ लगा कर
मय को पी लो |

पाप नहीं
कुछ पुण्य नहीं है,
स्वर्ग यहीं है
नर्क यहीं है,
आओ, मदिरालय में
आ जाओ
जीवन के
दो चार पलों को
पल पल जी लो |

कैसी उलझन
कैसी भटकन,
ये जीवन ही
है बस जीवन,
बाद मरण के
जाने क्या हो,
अब तो जागो
अब तो जी लो |

बाँह पकड़ लो
जो साकी की,
बाँह ना छोड़ो,
पी लो
सारी मदिरा पी लो,
आओ, मदिरालय में
आ जाओ,
जी लो
इस जीवन को जी लो |
राजीव जायसवाल

THIS POEM PRESENTED BELOW IN ROMAN SCRIPT ALSO-----

KEWAL KUCH DIN SHESH RAH GAYE
ISH JIWAN KE
AB TO JI LO
YOVAN KI CHALKI MADIRA HAI
HONTH LAGA KAR
MAY KO PI LO.

PAP NAHIN KUCH PUNYA NAHIN HAI
SWARG YAHIN HAI
NARK YAHIN HAI
AAO MADIRALAYA MEIN AA JAO
JIWAN KE DO CHAR PALON KA
AMRIT PI LO.

KAISI ULJHAN KAISI BHATKAN
YE JIWAN HI , HAI BAS JIWAN
BAAD MARAN KE JANE KYA HO
AB TO JAGO
AB TO JI LO.

BANH PAKAD LO
JO SAKI KI
BANH NA CHORO
PI LO
SARI MADIRA PI LO
AAO MADHUSHALA MEIN
AA JAO
JI LO IS JIWAN KO
JI LO.

RAJIV JAYASWAL
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धन गुरु गोबिंद सिंह |

धन गुरु गोबिंद सिंह
धन धन गुरु गोबिंद सिंह
मां गुज़री के लाल
गुरु गोबिंद सिंह
दुष्ट जन के काल
गुरु गोबिंद सिंह
ख़ालसा के सृश्टा
गुरु गोबिंद सिंह
नवयुग के दृशटा
गुरु गोबिंद सिंह
धन गुरु गोबिंद सिंह
धन धन गुरु गोबिंद सिंह |

वारे चारों लाल
गुरु गोबिंद सिंह
हर हाल में खुशहाल
गुरु गोबिंद सिंह
धर्म के रक्षक
गुरु गोबिंद सिंह
पापी के भक्षक
गुरु गोबिंद सिंह
धन गुरु गोबिंद सिंह
धन धन गुरु गोबिंद सिंह |
तुम पे हम को नाज़
गुरु गोबिंद सिंह
धर्म के सरताज
गुरु गोबिंद सिंह
योग में योगी
गुरु गोबिंद सिंह
लेखनी के धनी
गुरु गोबिंद सिंह
धन गोबिंद सिंह
धन धन गुरु गोबिंद सिंह |

युग प्रवर्तक संत
गुरु गोबिंद सिंह
रचा दसम ग्रंथ
गुरु गोबिंद सिंह
हे पिता दस्मेश
गुरु गोबिंद सिंह
संत सिपाही वेश
गुरु गोबिंद सिंह
धन गुरु गोबिंद सिंह
धन धन गुरु गोबिंद सिंह |

THIS POEM IS PRESENTED BELOW IN ROMAN SCRIPT---

DHAN GURU GOBIND SINGH
DHAN DHAN GURU GOBIND SINGH
MAA GUJRI KE LAL
GURU GOBIND SINGH
DUST JAN KE KAL
GURU GOBIND SINGH
KHALSA KE SRISHTA
GURU GOBIND SINGH
NAV YUG KE DRISHTA
GURU GOBIND SINGH
DHAN GURU GOBIND SINGH
DHAN DHAN GURU GOBIND SINGH.

VARON CHARON LAL
GURU GOBIND SINGH
HAR HAL MEIN KHUSHAL
GURU GOBIND SINGH
DHARM KE RAKSHAK
GURU GOBIND SINGH
PAPI KE BHAKSHAK
GURU GOBIND SINGH
DHAN GURU GOBIND SINGH
DHAN DHAN GURU GOBIND SINGH.

TUM PE HUM KO NAAJ
GURU GOBIND SINGH
DHARM KE SARTAJ
GURU  GOBIND SINGH
YOG MEIN YOGI
GURU GOBIND SINGH
LEKHNI KE DHANI
GURU GOBIND SINGH
DHAN GURU GOBIND SINGH
DHAN DHAN GURU GOBIND SINGH

YUG PRAVARTAK SANT
GURU GOBIND SINGH
RACHA DASAM GRANTH
GURU GOBIND SINGH
HEY  PITA DASHMESH
GURU GOBIND SINGH
SANT SIPAHI BHESH
GURU GOBIND SINGH
DHAN GURU GOBIND SINGH.

RAJIV JAYASWAL

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तलाश

कभी कभी ऐसा भी होता है
वही मिल जाता है
जो बार बार खोता है,
किसी तलाश में
हम उम्र भर भटकते हैं,
खुशी समझ के
उदासी के जाम पीते हैं.
कभी किसी को
कभी किसी को
तलाश करते हैं
किसी जीवन की चाह में
ता उम्र मरते हैं |

ना सच में होता है कुछ
झूठ भी नही होता.
किसी का साथ कभी
साथ ही नही होता,
ना इसके होते हैं हम
ओर ना उसके होते हैं,
ना जाने किस तलाश में
सभी को खोते हैं |

कहीं भी कोई नही है
जो हम को जान सके.
किसी को वक़्त नही है
जो हम को थाम सके.
की जिस तलाश ने
कितनो से रिश्ते जोड़ दिए.
उसी तलाश ने
सब रिश्ते नाते तोड़ दिए |
राजीव जायसवाल

सुख क्या है |

सुख क्या है
पैसा, घर या प्यार,
क्या मिल जाए
मन होजाए खुशहाल,
हो मकान और ज़मीन
एक बड़ा से बंगला
और मोटर कार,
पति हो, पत्नी हो
और बच्चे यार,
सुख क्या है
पैसा, घर या प्यार |

कोई हुआ पागल
दिन रात भागे
पैसों के पीछे,
कई रात जागे
इतना मिल जाए
जीवन तर जाए,
एक दिन ऐसा हो
जीवन ही दे ना साथ,
खाली आया था
और जाए खाली हाथ
सुख क्या है
पैसा, घर या प्यार |

किसी को चाहत है
शोहरत की, ताक़त की,
ऐसा हो जाए
मेरा हो जाए नाम,
मुझ को सब जाने
मेरे सब हो जाए काम,
मुझ से सब नीचे हो
मैं बन जाउँ भगवान,
सुख क्या है
पैसा, घर या प्यार |

किसी को हसरत है
किसी प्रेमी की,
प्यार खुदा मान लिया
जिस को चाहा
मिल जाए वो,
छूटे चाहे सब संसार,
प्यार में जीना और मरना हो
बाकी सब है बेकार,
सुख क्या है
पैसा, घर या प्यार |
राजीव जायसवाल
This poem presented in roman script also—

SUKH KYA HAI
PAISA,GHAR YA PYAR
KYA MIL JAYE
MANN HO JAYE KHUSHAL
HO MAKAN OR JAMIN
EK BADA SA BUNGLOW
OR MOTOR,CAR
PATI HO, PATNI HO
OR BACHHE YAR
SUKH KYA HAI
PAISA, GHAR YA PYAR.

KOI HUL PAGAL
DIN RATT BHAGEY
PAISON KE PICHEY
KAI RATT JAGE
ITNA MIL JAYE
KI JIWAN TAR JAYE
EK DIN AISA HO
JIWAN HI DE NA SATH
KHALI HATH AYA THA
OR JAYE KHALI HATH
SUKH KYA HAI
PAISA, GHAR YA PYAR.

KISI KO CHAHAT HAI
SOHRAT KI, TAKAT KI
AISA HO JAYE
MERA HO JAYE NAAM
MUJH KO SAB JANEY
MERE SAB HO JAEIN KAAM
MUJH SE SAB NICHE HON
MAIN BAN JAUN BHAGWAN
SUKH KYA HAI
PAISA, GHAR YA PYAR.

KISI KO HASRAT HAI
KISI PREMI KI
PYAR KHUDA MAAN LIYA
JIS KO CHAHA
VO MIL JAYE
CHUT JAYE SAB SANSAR
PYAR MEIN JINA HO, MARNA HO
BAKI SAB HAI BEKAR
SUKH KYA HAI
PAISA, GHAR YA PYAR.

RAJIV JAYASWAL

SOME DAYS BEFORE IN A FAMILY GATHERING, DISCUSSION STARTED ABOUT IMPORTANCE OF MONEY IN LIFE. SOME SAID ENOUGH MONEY IS REQUIRED FOR HAPPY LIFE, SOME ARGUED FOR HEALTH, SOME FOR NAME, FAME AND POWER AND SOME PITCHED FOR LOVE LIFE.
THIS POEM IS ABOUT THE VALUE OF THESE THINGS IN LIFE.
ALL COMMENTS INVITED.
RAJIV JAYASWAL

मैं कुछ भी ना देख सकूँगा |

मेरा होना , ना होना
अर्थ कोई रखता है क्या
एक दिन जब शून्य बन
विलीन हो जाउँगा
किस किस को याद आउँगा
मुझ को ना कुछ पता चलेगा
मैं कुछ भी ना देख सकूँगा |

सब कुछ होगा
धरती, सूरज, चाँद, सितारे
लोग भी होंगे
बगिया में होगी बहार भी
बारिश होगी रिमझिम रिमझिम
मैं कुछ भी ना देख सकूँगा |

होगी होली, दीवाली भी
ऐसे ही संसार चलेगा
घर भी होगा, नगर भी होगा
मेरा अस्तित्व मगर ना होगा
कोई मुझ को याद करेगा
सपना समझ कोई भूलेगा भी
मैं कुछ भी ना देख सकूँगा |

सपने में मुझ को देखेंगे
मेरे अपने ही तरसेंगे
उन के आँसू ही बरसेंगे
वे ही मुझ को याद करेंगे
ऐसे ही दिन पर दिन बीतेंगे
मैं कुछ भी ना देख सकूँगा|
A DAY WOULD COME , WHEN WE WOULD NOT EXIST ON THIS PLANET EARTH. OUR FAMILY MEMBERS, OUR FRIENDS WOULD REMEMBER US AND OUR MEMORIES WOULD FADE AWAY WITH PASSING OF TIME.
THOUGH TO SOME, THIS POEM MAY APPEAR AS NEGATIVE FEELING BUT THE TRUTH OF LIFE SHOULD NOT BE FORGOTTEN.
RAJIV JAYASWAL
16/05/2010















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स्वपन |

जब मैं सोता हूँ
मेरा मन जग जाता है,
मेरा अंतर्मन
मुझ को स्वपन दिखाता है,
जग एक सपना
सपने में सपना,
भागा दौड़ी, धूम धड़ाका
सब दिखलाता है,
जब मैं सोता हूँ
मेरा मन जग जाता है |

कभी नींद में डर जाता हूँ
जाने कौन डगर जाता हूँ,
कभी कभी मैं मर जाता हूँ
मरे हुओ को पा जाता हूँ,
जाने कौन जगह जाता हूँ
भली बुरी बातें करता हूँ,
जाने मैं क्या क्या करता हूँ
मैं हंसता हूँ, मैं रोता हूँ,
किस दुनिया में खो जाता हूँ,
अंतर्मन मेरा मुझ को
तरह तरह के दृश्य दिखाता है,
जब मैं सोता हूँ,
मेरा मन जग जाता है |

जाती रात , सुबह आती है
जाती सुबह, धूप आती है
मेरे मन की पीड़ा भी बस
साथ साथ बढ़ती जाती है
इस जीवन का मतलब क्या है
जग सपना है
तो सच क्या है,
जीना क्या है,मरना क्या है ,
ऐसी बातों से अंतर्मन
भरमा जाता है,
जब मैं सोता हूँ
मेरा मन जग जाता है |
स्वपन मुझे हमेशा हैरान करते हैं, सपनो की दुनिया बहुत निराली होती है|
मेरी यह कविता सपनो की इसी दुनिया पर आधारित है|
राजीव जायसवाल

सुंदर चेहरे |

सुंदर चेहरे
मन को भाते
सुंदर चेहरे
मन ललचाते
कितना भी
समझाओ मन को
सुंदर चेहरे
चैन चुराते |

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मंगलवार, 23 अगस्त 2011

वो लड़का ,मैं ही था |


वो लड़का
मैं ही था
उस के आने का समय
मुझ को पता था ,
उस के जाने का समय
मैं जानता था ,
उस गली के मोड़ पर
या बस की लाइन में
या उस के घर के नीचे
यूँही मैं घूमता था ,
देखता उस को
नज़र से चूमता था
वो लड़का मैं भी था |

नाम उस का
जाने क्या था ,
मैं उसे
कहता परी था ,
झील सी आँखें थीं उसकी
चाँद सा चेहरा ,
रात दिन
उसी को सोचता था ,
हर घड़ी
मैं उसी को खोजता था |

बहुत बीते साल
अब कहीं मैं
और कहीं वो ,
जाने कहाँ
वो दिन गये खो ,
अब भी मैं
भुला ना उसको ,
वो मेरा प्यार थी पहला ,
हो कहीं भी वो
रहे खुश वो
भले मुझे वो दे भुला |

राजीव
२१/०८/२०११

सोमवार, 22 अगस्त 2011

प्राण मेरे |

प्राण मेरे

तुम मेरे हर अंश में

समाए हो कभी से

जब से मेरे

चैतन्य ने खोली थी आँखें |

हर दिशा में

है तुम्हारी लालिमा ही,

मेरे अंतर में

बसे हो प्रेम बनकर,

आँख का काजल है

तुम्हारी कालीमा ही |



आदि से आदिम पुरुष में

तुम ही समाए थे,

युग युगों से

नर नारी के

संसर्ग भी

तुम ने कराए थे |

प्राण मेरे

गर्भ बनकर

मेरे संग संग

तुम ही रहे थे

बालपन में

कृष्ण संग

माखन चुराए थे |

तुम ही

बनकर वासना

यौवन सुख सजाए थे|

प्राण मेरे

सैथिल्य होती देह में

तुम ही रहे थे

काँपते हाथों में

तुम्ही थे

जर्जरित काया में

थी तुम्हारी ही

पिघलती काली छाया

मौत आने पर

मेरे संग तुम गये थे

प्राण मेरे |

प्राण मेरे

कितनी देहों में

रहे तुम साथ मेरे

मेरे सब सुख दुख

सहे तुम ने,

हर व्यथा को

पी गये चुपचाप तुम

प्राण मेरे |

क्या पता |

सच है क्या

और झूठ क्या है

क्या पता,

क्या खुदा है

या नही है

क्या पता,

हम अमर है

या हैं नश्वर

क्या पता,

जन्म लेंगे फिर

या ख़तम हो जाएगा

नामो निशान |



कोई ताक़त है

नहीं है,

या सभी कुछ

स्व चालित है,

देखता है कोई

हमको हर घड़ी,

सब दिलासे हैं

जमाने के

या कुछ भी नहीं है,

क्या पता

सच है क्या,

और झूठ क्या है

क्या पता |



हम अकेले हैं

या कहीं कोई और है,

इतने बड़े

संसार में,

एक धरती ही

मिली

जीवन को बसने के लिए

या है कोई जीवन

किसी ओर भी

नक्षत्रा पर,

ये क्या पता

सच है क्या

और झूठ क्या है

क्या पता |



जो लिखा है

पोथियों में धर्म की

वो सच भी हैं,

या झूठ हैं

या किसी नादान

पंडित की

समझ की भूल हैं,

ये क्या पता

सच है क्या

और झूठ क्या है

क्या पता |



आदमी ,

आदम की है औलाद

या है

बंदरों की

झुटे हैं

सब के ये ख्यालत

ये किस को पता है

चाँद पर पहुँचा

भी है इंसान

या सब झूठ है

सच है क्या

और झूठ क्या है

क्या पता |

RAJIV JAYASWAL



THERE ARE MANY THING INL LIFE ABOUT WHOM WE ARE NEVER SURE, WHATEVER WE KNOW ABOUT THOSE THINGS ARE ON THE BASIS OF ASSUMPTIONS.

THOUGH HUMAN MIND HAS UNLIMITED CAPACITY BUT WE KNOW LITTLE ABOUT MANY SECRETS OF LIFE, UNIVERSE , LIFE AND DEATH.

MY THIS POEM REFLECTS THIS UNCERTAINITY.

20/05/2010

किसी की याद

ये शाम बहुत उदास सी है

दिल में कैसी अजीब प्यास सी है

क्या बताएँ तुम्हे हम हालेदिल

बहुत अकेले हैं, कोई तो जाए मिल |



किसी की आस में, ये उम्र सारी बीत गयी

किसी तलाश में ये मन, कहाँ कहाँ भटका

की कोई ये तो बता दे कभी भी आ के हमें

कभी मिलेगा वो की नहीं, किसी शहर में |



ना जाने कौन चुपके से हमें बुलाता है

किसी जगह वो हमको नज़र ना आता है

ये मेरे मन का भुलावा है,या कोई जादूगरी

कहीं कोई भी नहीं है, ये कैसी है नगरी |



क्या तुम को भो कोई आवाज़ आती है

किसी की याद तुम को कभी सताती है

क्या तुमने भी कोई वो ख्वाब देखा है

कहीं से आके कोई तुम को चूम लेता है |



जो मेरे साथ है, वो अपने से नहीं लगते

जो मुझ से दूर हैं, वो अपने हो नहीं सकते

कभी कहीं ऐसा सा कोई मिल जाए,

जिस से मिल के,मन को सुकून मिल जाए |



राजीव जायसवाल

स्वपन |

जब मैं सोता हूँ

मेरा मन जग जाता है,

मेरा अंतर्मन

मुझ को स्वपन दिखाता है,

जग एक सपना

सपने में सपना,

भागा दौड़ी, धूम धड़ाका

सब दिखलाता है,

जब मैं सोता हूँ

मेरा मन जग जाता है |

कभी नींद में डर जाता हूँ

जाने कौन डगर जाता हूँ,

कभी कभी मैं मर जाता हूँ

मरे हुओ को पा जाता हूँ,

जाने कौन जगह जाता हूँ

भली बुरी बातें करता हूँ,

जाने मैं क्या क्या करता हूँ

मैं हंसता हूँ, मैं रोता हूँ,

किस दुनिया में खो जाता हूँ,

अंतर्मन मेरा मुझ को

तरह तरह के दृश्य दिखाता है,

जब मैं सोता हूँ,

मेरा मन जग जाता है

जाती रात , सुबह आती है

जाती सुबह, धूप आती है

मेरे मन की पीड़ा भी बस

साथ साथ बढ़ती जाती है

इस जीवन का मतलब क्या है

जग सपना है

तो सच क्या है,

जीना क्या है,मरना क्या है ,

ऐसी बातों से अंतर्मन

भरमा जाता है,

जब मैं सोता हूँ

मेरा मन जग जाता है |

स्वपन मुझे हमेशा हैरान करते हैं, सपनो की दुनिया बहुत निराली होती है|

मेरी यह कविता सपनो की इसी दुनिया पर आधारित है|

राजीव जायसवाल




प्राण मेरे |

प्राण मेरे

तुम मेरे हर अंश में

समाए हो कभी से

जब से मेरे

चैतन्य ने खोली थी आँखें |

हर दिशा में

है तुम्हारी लालिमा ही,

मेरे अंतर में

बसे हो प्रेम बनकर,

आँख का काजल है

तुम्हारी कालीमा ही |



आदि से आदिम पुरुष में

तुम ही समाए थे,

युग युगों से

नर नारी के

संसर्ग भी

तुम ने कराए थे |

प्राण मेरे

गर्भ बनकर

मेरे संग संग

तुम ही रहे थे

बालपन में

कृष्ण संग

माखन चुराए थे |

तुम ही

बनकर वासना

यौवन सुख सजाए थे|

प्राण मेरे

सैथिल्य होती देह में

तुम ही रहे थे

काँपते हाथों में

तुम्ही थे

जर्जरित काया में

थी तुम्हारी ही

पिघलती काली छाया

मौत आने पर

मेरे संग तुम गये थे

प्राण मेरे |

प्राण मेरे

कितनी देहों में

रहे तुम साथ मेरे

मेरे सब सुख दुख

सहे तुम ने,

हर व्यथा को

पी गये चुपचाप तुम

प्राण मेरे |

बढ़ती उम्र और मन |

बढ़ने लगी उम्र

हमारी भी, तुम्हारी भी

थमने लगी है नब्ज़

हमारी भी, तुम्हारी भी

आओ जीने की कुछ वजह चुन लें

ढलने लगी है शाम

हमारी भी, तुम्हारी भी|



की आएगी ना लौट के

ये घड़ी बार बार

कुछ और दिन जो रह गए

उन को तो जी लो यार

ये बात मेरी सुन के

यूँ ना मुस्कुराइए

दो चार दिन की जिंदगी

ना यूँ गँवाइए|



मुद्दत के बाद फिर

किसी पे दिल ये आया है

मुद्दत के बाद मिलन का

सपना सजाया है,

अब आप मेरी बात को

बस मान जाइए

जो बीत गये पल ये

तो फिर ना पछताईए



ये उम्र का बढ़ना भी

बुरी बात है, ए दिल

ज्यों ज्यों दिया बुझने लगा

त्यों त्यों मिले मंज़िल

मंज़िल करीब आ गयी

तो बुझने लगा है

की, अब खुदा ने आने का

फरमान दिया है|



मेरी पहली कविता--------MY FIRST POEM

शतुरमुर्ग सी टांग है

हाथी जैसे दाँत

लेकिन इन का

परिचय है

मिस्टर उमाकांत |

पढ़ते हैं नॉवेल ये

ज़ीरो ज़ीरो सेवेन

पर चूहे को देखकर होते

नाइन टू इलेवेन |

बच्चे इन से डरते हैं सब

क्रोध इन्हें आ जाए जब

शामत सब की आ जाती है

इन को शांत रखो रब |



यह कविता मैने छठी क्लास में लिखी थी जब मैं अर्वचिन स्कूल , दिल्ली में पढ़ता था |हमारी क्लास की टीचर उमा अरोड़ा जी थी, जिनसे हम सब बच्चे डरते थे और जो बहुत कड़क मिज़ाज़ थी |हमारे स्कूल की पत्रिका निकल रही थी, जिस के लिए हमको कविता या निबंध लिखने के लिए कहा गया, मुझे लगा की उमा जी से बदला लेने का यह अच्छा मौका है, सो मैने ये कविता लिख दी |इस को पढ़ने के बाद उमा जी ने मुझे अपने पास बुलाया और बड़े प्यार से पूछा की क्या यह कविता मैने उन पर लिखी है, मैं दर गया और मैने माफी माँगी लेकिन वो मुस्कुरा रही थी | मुझे नही पता की आज वे कहाँ पर हैं| मैं यह अपनी पहली कविता सम्मान के साथ उन को समर्पित करता हूँ |

राजीव जायसवाल

MY FIRST POEM



SHATURMURG SI TANG HAI

HATHI JAISE DANT

LEKIN INKA PARICHAY HAI

MR UMAKANT

PADHTE HAIN NOVEL YE

ZERO ZERO SEVEN

PAR CHUHE KO DEKH KAR

HOTE NINE TWO ELEVEN

BACHHE IN SE DARTE HAIN SAB

KRODH INHEIN AA JAYE JAB

SHAMAT SAB KI AA JATI HAI

IN KO SHANT RAKHO RAB .

I WROTE THIS POEM IN 6TH STANDARD, WHEN I WAS A STUDENT OF ARWACHIN SCHOOL DELHI. OUR CLASS TEACHER MS UMA ARORA WAS VERY STRICT . A SCHOOL MAGAZINE WAS GOING TO BE PUBLISHED AND WE WERE BEING ASKED TO GIVE ARTICLES FOR THAT , I THOUGHT THAT IT WAS A GOOD OPPORTUNITY TO EMBARASS HER AND I WROTE THESE LINES. AFTER READING THIS POEM SHE CALLED ME AND ASKED THE EXPLANATION. I BECAME SCARED AND APOLOGIZED BUT SHE WAS SMILING.

I DO NOT KNOW WHERE OUR MADAM IS NOW, BUT I DEDICATE THIS FIRST POEM OF MINE TO HER.

R J

हम से सीखो |

उपर उपर हंसते रहना

गहराई में रो लेना

अंतर में जब भड़के ज्वाला

आँसुवन झील डुबो देना

कितना हो कोलाहल मन में

बन मौन हलाहल पी जाना

हम से सीखो घुट घुट जीना

हम से सीखो गम को पीना

हम से सीखो प्यार निभाना

निभा निभा, खुद ही मिट जाना |

हम ने कितने जख्म छुपाए

सितम सहे, लब उफ़ ना लाए

हंसकर दुख सारे सह जाए

उन का नाम ना लब पर लाए

हम से सीखो, ना कुछ कहना

हम से सीखो, चुप ही रहना |

उजियारे में दिए जलाना

आँधियारे में बुझा देना

कोई देख पाए ना हम को

सौ पर्दों में छुप जाना

नाम कोई ना पूछे उन का

उन का नाम भुला देना

हम से सीखो प्यार निभाना

निभा निभा कर मिट जाना

फिर भी है इल्ज़ाम हमीं पर

उल्फ़त से रुसवाई का

जफ़ा उन्हीं की, बेरूख़ी उन्ही की

हम पर दोष बेवफ़ाई का

हम से सीखो , तोहमत सुन कर

चुप रहने की आदत को

हम से सीखो

सब कुछ सह कर

सह जाने की हिम्मत को.

राजीव जायसवाल

२०/०६/२०१०


कहाँ गये वो |

कहाँ गये वो

कल तक थे जो

साथ हमारे,

छोड़ गये क्यों

साथ हमारे |

बचपन से यौवन तक

पकड़े हाथ हमारे

दिए सहारे,

छोड़ गये क्यों

बीच सफ़र में,

मीत हमारे,सखा हमारे |

जिन चेहरों को

हम तकते थे

सांझ सकारे,

नयन हमारे

देख सके ना

उन चेहरों को

बीत गये दिन

कितने सारे |

दिन बीते

दिन पर दिन बीते

तुम बिन सब दिन

रीते रीते,

आई होली, गयी दीवाली

अपना अंगना

खाली खाली |

कहाँ गये तुम

ना आने को,

नयन हमारे

रो रो हारे,

मीत हमारे, सखा हमारे,

राह तकत हैं

सांझ सकारे |

जीते क्यों हैं

मरते क्यों हैं

सब मरने से

डरते क्यों हैं.

मिलते और बिछड़ते क्यों हैं

बनते और बिगड़ते क्यों हैं |

इस जीवन का

मतलब क्या है

सब कुछ क्यों

बेमतलब सा है

कौन खुदा है

कौन विधाता

सब सृष्टि को

कौन बनाता

राजीव जायसवाल

मेरी यह कविता मेरी दादी, चाचा जी और चाची को समर्पित है, जिनके प्यार से मेरा बचपन गुलज़ार रहा , लेकिन जो अब इस दुनिया में नहीं हैं |

२४/०६/२०१०

आओ करें |

प्रहार ही करना है

तो आओ करें

रूढियों पर, अंधविश्वासों पर

विषमताओं पर,

सदियों से चले आ रहे

मिथ्या विश्वासों पर |

अरे,एक दूसरे पर

सभ्यता के इस युग में

धर्म के नाम पर

आदिम जातियों के समान

प्रहार करने से

क्या तुम्हें मिल जाएगा

मार्ग धर्म का, समानता का |



प्रचार ही करना है

तो आओ करें

नैतिकता के विचारों का

समानता का, स्वतंत्रता का

ना की करें प्रलाप

अनगर्ल बकवासों का

मिथ्या विश्वासों का |



विचार ही करना है

तो आओ करें

बढ़ती जनसंख्या का

प्रदूषण का, महामारी का

क्यों घोलते हो

मन में जहर

अश्लील, सांप्रदायिक व घिनोनी

बातों का |



अनुकरण ही करना है

तो आओ करें

बुद्ध का, विवेकानंद का

महात्मा गाँधी का

क्यों बनाते हो आदर्श मन में

दुष्ट, पाखंडियों, वासना के मारों का

हत्यारों का |

शनिवार, 20 अगस्त 2011

हाँ , मैं तुम से प्यार करता हूँ |


हाँ , मैं भी तुम से प्यार करता हूँ
आज मैं इकरार करता हूँ
देर से जाना,
मगर जाना
तुम्हीं से प्यार करता हूँ
हाँ , मैं तुम से प्यार करता हूँ |


तुम मुझे कहती रहीं
मेरा तुम प्यार हो,
सब समर्पित है
तुम ही को,
तुम मेरा संसार हो,
मैं रहा भटका
रंगीली वादियों में,
देर से जाना,
तुम ही जाना
मेरा संसार हो
हाँ , तुम ही मेरा प्यार हो |

तुम समर्पित ही रहीं
मुझ को
मेरे परिवार को
मेरे दुख में
रोई तुम
सुख में हँसी
कोई मेरे साथ
हो ना हो
तुम मेरे साथ थीं
तुम बनी
ज्यों मेरा परछाया
मुझे पर अब समझ आया
मैं सिर्फ़ तुम से
सिर्फ़ तुम से
कसम लो
सिर्फ़ तुम ही से
प्यार करता हूँ |

राजीव जायसवाल
२०/०८/२०११
मैं यह कविता अपनी प्रियतमा , अपनी पत्नी, अपनी सुख दुख की साथी वंदना को समर्पित करता हूँ|


आरती |


प्रेम की मंदाकिनी
बह रही झर झर
हिमालय बन गया ,
मेरा शिखर
अंतःकरण मेरा
गंगोत्री बन गया
गंगा बही अविरल |


उदित हुआ सूर्य
मम आकाश में ,
किरणें धवल उज्जवल
आलोकित मन हुआ
तन हुआ शीतल |

दीप सब जलने लगे
मंदिर मेरे ,
अंतर मेरे
ज्यों शंख से बजने लगे ,
नभ के तारे
दीप बन सजने लगे ,
मौन में
हम आरती करने लगे |

राजीव जायसवाल
११/०८/२०११

बुधवार, 17 अगस्त 2011

ऐसा कैसे हो जाता है ?


ऐसा कैसे हो जाता है

एक बीज से बन जाता है

पेड़ बड़ा सा,

भोला सा बचपन होता है

बूढ़ा कैसे हो जाता है,

सब कुछ तो होता है तन में

ना जाने क्या खो जाता है,

ऐसा कैसे हो जाता है |



रोज रात को सो जाता है

रोज सुबह को उठ जाता है

एक रात ऐसा होता है

सोते का सोता रहता है,

कल तक जो चलता फिरता था

ऐसे कैसे सो जाता है,

सब कुछ तो होता है तन में

ना जाने क्या खो जाता है,

ऐसा कैसे हो जाता है |



रोज सुबह सूरज उगता है

रोज शाम को ढल जाता है,

कल जिस को हम कल कहते थे

आज वो कैसे हो जाता है,

पल जो बीत गया था पल में

पल पल कैसे तरसाता है,

ऐसा कैसे हो जाता है |



रोज़ रोज़ मंदिर जाता है

राम नाम का जप करता है,

एक रोज ऐसा होता है

राम नाम सत सब कहते हैं

वो चुपचाप पड़ा रहता है,

चिर निद्रा में सो जाता है,

सब कुछ तो होता है तन में

ना जाने क्या खो जाता है,

ऐसा कैसे हो जाता है ?




कभी कभी ऐसा भी होता है |

कभी कभी ऐसा भी होता है

वही मिल जाता है

जो बार बार खोता है,

किसी तलाश में

हम उम्र भर भटकते हैं,

खुशी समझ के

उदासी के जाम पीते हैं.

कभी किसी को

कभी किसी को

तलाश करते हैं

किसी जीवन की चाह में

ता उम्र मरते हैं |



ना सच में होता है कुछ

झूठ भी नही होता.

किसी का साथ कभी

साथ ही नही होता,

ना इसके होते हैं हम

ओर ना उसके होते हैं,

ना जाने किस तलाश में

सभी को खोते हैं |



कहीं भी कोई नही है

जो हम को जान सके.

किसी को वक़्त नही है

जो हम को थाम सके.

की जिस तलाश ने

कितनो से रिश्ते जोड़ दिए.

उसी तलाश ने

सब रिश्ते नाते तोड़ दिए |

राजीव जायसवाल


वही मिल जाता है

जो बार बार खोता है,

किसी तलाश में

हम उम्र भर भटकते हैं,

खुशी समझ के

उदासी के जाम पीते हैं.

कभी किसी को

कभी किसी को

तलाश करते हैं

किसी जीवन की चाह में

ता उम्र मरते हैं |



ना सच में होता है कुछ

झूठ भी नही होता.

किसी का साथ कभी

साथ ही नही होता,

ना इसके होते हैं हम

ओर ना उसके होते हैं,

ना जाने किस तलाश में

सभी को खोते हैं |



कहीं भी कोई नही है

जो हम को जान सके.

किसी को वक़्त नही है

जो हम को थाम सके.

की जिस तलाश ने

कितनो से रिश्ते जोड़ दिए.

उसी तलाश ने

सब रिश्ते नाते तोड़ दिए |

राजीव जायसवाल

सुख क्या है ?

सुख क्या है

पैसा, घर या प्यार,

क्या मिल जाए

मन होजाए खुशहाल,

हो मकान और ज़मीन

एक बड़ा से बंगला

और मोटर कार,

पति हो, पत्नी हो

और बच्चे यार,

सुख क्या है

पैसा, घर या प्यार |



कोई हुआ पागल

दिन रात भागे

पैसों के पीछे,

कई रात जागे

इतना मिल जाए

जीवन तर जाए,

एक दिन ऐसा हो

जीवन ही दे ना साथ,

खाली आया था

और जाए खाली हाथ

सुख क्या है

पैसा, घर या प्यार |



किसी को चाहत है

शोहरत की, ताक़त की,

ऐसा हो जाए

मेरा हो जाए नाम,

मुझ को सब जाने

मेरे सब हो जाए काम,

मुझ से सब नीचे हो

मैं बन जाउँ भगवान,

सुख क्या है

पैसा, घर या प्यार |



किसी को हसरत है

किसी प्रेमी की,

प्यार खुदा मान लिया

जिस को चाहा

मिल जाए वो,

छूटे चाहे सब संसार,

प्यार में जीना और मरना हो

बाकी सब है बेकार,

सुख क्या है

पैसा, घर या प्यार |

राजीव जायसवाल

This poem presented in roman script also—



SUKH KYA HAI

PAISA,GHAR YA PYAR

KYA MIL JAYE

MANN HO JAYE KHUSHAL

HO MAKAN OR JAMIN

EK BADA SA BUNGLOW

OR MOTOR,CAR

PATI HO, PATNI HO

OR BACHHE YAR

SUKH KYA HAI

PAISA, GHAR YA PYAR.



KOI HUL PAGAL

DIN RATT BHAGEY

PAISON KE PICHEY

KAI RATT JAGE

ITNA MIL JAYE

KI JIWAN TAR JAYE

EK DIN AISA HO

JIWAN HI DE NA SATH

KHALI HATH AYA THA

OR JAYE KHALI HATH

SUKH KYA HAI

PAISA, GHAR YA PYAR.



KISI KO CHAHAT HAI

SOHRAT KI, TAKAT KI

AISA HO JAYE

MERA HO JAYE NAAM

MUJH KO SAB JANEY

MERE SAB HO JAEIN KAAM

MUJH SE SAB NICHE HON

MAIN BAN JAUN BHAGWAN

SUKH KYA HAI

PAISA, GHAR YA PYAR.



KISI KO HASRAT HAI

KISI PREMI KI

PYAR KHUDA MAAN LIYA

JIS KO CHAHA

VO MIL JAYE

CHUT JAYE SAB SANSAR

PYAR MEIN JINA HO, MARNA HO

BAKI SAB HAI BEKAR

SUKH KYA HAI

PAISA, GHAR YA PYAR.



RAJIV JAYASWAL



SOME DAYS BEFORE IN A FAMILY GATHERING, DISCUSSION STARTED ABOUT IMPORTANCE OF MONEY IN LIFE. SOME SAID ENOUGH MONEY IS REQUIRED FOR HAPPY LIFE, SOME ARGUED FOR HEALTH, SOME FOR NAME, FAME AND POWER AND SOME PITCHED FOR LOVE LIFE.

THIS POEM IS ABOUT THE VALUE OF THESE THINGS IN LIFE.

ALL COMMENTS INVITED.

RAJIV JAYASWAL

13/05/10

आत्मसाथी की तलाश---------SEARCH OF THE SOULMATE

ये शाम बहुत उदास सी है

दिल में कैसी अजीब प्यास सी है

क्या बताएँ तुम्हे हम हालेदिल

बहुत अकेले हैं, कोई तो जाए मिल |



किसी की आस में, ये उम्र सारी बीत गयी

किसी तलाश में ये मन, कहाँ कहाँ भटका

की कोई ये तो बता दे कभी भी आ के हमें

कभी मिलेगा वो की नहीं, किसी शहर में |



ना जाने कौन चुपके से हमें बुलाता है

किसी जगह वो हमको नज़र ना आता है

ये मेरे मन का भुलावा है,या कोई जादूगरी

कहीं कोई भी नहीं है, ये कैसी है नगरी |



क्या तुम को भो कोई आवाज़ आती है

किसी की याद तुम को कभी सताती है

क्या तुमने भी कोई वो ख्वाब देखा है

कहीं से आके कोई तुम को चूम लेता है |



जो मेरे साथ है, वो अपने से नहीं लगते

जो मुझ से दूर हैं, वो अपने हो नहीं सकते

कभी कहीं ऐसा सा कोई मिल जाए,

जिस से मिल के,मन को सुकून मिल जाए |



राजीव जायसवाल

This poem is presented in roman script also==





YE SHAM BAHUT UDAS SI HAI

DIL MEIN KAISI AJIB PYAS SI HAI

KYA BATAEIN TUMHEIN HUM HALE DIL

BAHUT AKELE HAIN,KOI TO KAHIN JAE MIL.



KISI KI AAS MEIN ,YE UMRA SARI BEET GAYI

KISI TALASH MEIN YE MANN KAHAN KAHAN BHATKA

KE KOI YE TO BATA DE KABHI BHI AA KE HUMEIN

KABHI MILEGA BHI KI NAHIN VO KISI SAHAR MEIN.



NA JANE KAUN CHUP KE HUMEIN BULATA HAI

KISI JAGHA BHI VO HUMKO NAJAR NA ATA HAI

YE MERE MANN KA BHULAVA HAI, YA KOI JADUGARI

KAHIN KOI BHI NAHIN HAI, YE KAISI HAI NAGRI.



KYA TUM KO BHI KOI AWAZ ATI HAI

KISI KI YAD TUM KO BHI KYA SATATI HAI

KYA TUMNE BHI, KOI VO KHWAB DEKHA HAI

KAHIN SE AKE KOI, TUM KO CHUM LETA HAI.



JO MERE SATH HAIN, VO APNE SE NAHIN LAGTE

JO MUJH SE DUR HAIN, VO APNE HO NAHIN SAKTE

KABHI KAHIN AISA SA KOI MIL JAYE

KI JIS SE MIL KE, YE MANN MERA SAMBHAL PAYE.



RAJIV JAYASWAL

मैं कुछ भी ना देख सकूँगा |


मेरा होना , ना होना

अर्थ कोई रखता है क्या

एक दिन जब शून्य बन

विलीन हो जाउँगा

किस किस को याद आउँगा

मुझ को ना कुछ पता चलेगा

मैं कुछ भी ना देख सकूँगा |



सब कुछ होगा

धरती, सूरज, चाँद, सितारे

लोग भी होंगे

बगिया में होगी बहार भी

बारिश होगी रिमझिम रिमझिम

मैं कुछ भी ना देख सकूँगा |



होगी होली, दीवाली भी

ऐसे ही संसार चलेगा

घर भी होगा, नगर भी होगा

मेरा अस्तित्व मगर ना होगा

कोई मुझ को याद करेगा

सपना समझ कोई भूलेगा भी

मैं कुछ भी ना देख सकूँगा |



सपने में मुझ को देखेंगे

मेरे अपने ही तरसेंगे

उन के आँसू ही बरसेंगे

वे ही मुझ को याद करेंगे

ऐसे ही दिन पर दिन बीतेंगे

मैं कुछ भी ना देख सकूँगा|

A DAY WOULD COME , WHEN WE WOULD NOT EXIST ON THIS PLANET EARTH. OUR FAMILY MEMBERS, OUR FRIENDS WOULD REMEMBER US AND OUR MEMORIES WOULD FADE AWAY WITH PASSING OF TIME.

THOUGH TO SOME, THIS POEM MAY APPEAR AS NEGATIVE FEELING BUT THE TRUTH OF LIFE SHOULD NOT BE FORGOTTEN.

RAJIV JAYASWAL

16/05/2010





























16/05.2010


सामीप्यता |

मैं सोचता हूँ

वो समझ जाती है

मैं उदास होता हूँ

वो कहीं पर रोती है

मन से मन का

ये रिश्ता कितना अजीब है

बहुत दूर होकर भी

वो मेरे कितने करीब है |



कभी उसे चोट लगे

दर्द मुझे होता है

मैं अगर ना सो पाउँ

वो भी ना सोती है

मन से मन का

ये रिश्ता कितना अजीब है

दूर बहुत होकर भी

वो मेरे कितने करीब है |



ऐसा क्यों होता है

दूर बहुत होकर भी

कोई मन के करीब होता है

अपना सा लगे कभी

सपना सा लगता है

मन से मन का

ये रिश्ता कितना अजीब है

दूर बहुत होकर भी

वो मेरे कितने करीब है |



कोई समीप होकर भी

मन से दूर होता है

कोई करीब होकर भी

दिल से दूर होता है

लेकिन जो दूर बहुत

वो कितना नज़दीक है

सामीप्यता का ए मन मेरे

ये सिलसिला अजीब है

दूर बहुत होकर भी

वो मेरे कितने करीब है |

This poem is presented below in roman script also—

MAIN SOCHTA HUIN

VO SAMAJH JATI HAI

MAIN UDAS HOTA HUIN

VO KAHIN PE ROTI HAI

MANN SE MANN KA YE

RISHTA KITNA AJIB HAI

DUR BAHUT HO KE BHI

VO MERE KITNI KARIB HAI.



KABHI USEY CHOT LAGE

DARD MUJH KO HOTA HAI

MAIN AGAR NA SO PAUN

VO BHI NA SOTI HAI

MANN SE MANN KA YE

RISHTA KITNA AJIB HAI

DUR BAHUT HO KE BHI

VO MERE KITNI KARIB HAI



AISA KYON HOTA HAI

DUR BAHUT HO KAR BHI

KOI KARIB HOTA HAI

APNA SA LAGE KABHI

SAPNA SA LAGTA HAI

MANN SE MANN KA YE

RISHTA KITNA AJIB HAI

DUR BAHUT HOKAR BHI

VO MERE KITNI KARIB HAI.



KOI SAMIP HOKAR BHI

MANN SE DUR HOTA HAI

KOI KARIB HOKAR BHI

BAHUT DUR HOTA HAI

LEKIN JO DUR BAHUT

VO KITNA NAZDIK HAI

SAMIPYTA KA E MANN MERE

YE SILSILA AJIB HAI

DUR BAHUT HOKAR BHI

VO MERE KITNI KARIB HAI.

RAJIV JAYASWAL

क्या पता ?

सच है क्या

और झूठ क्या है

क्या पता,

क्या खुदा है

या नही है

क्या पता,

हम अमर है

या हैं नश्वर

क्या पता,

जन्म लेंगे फिर

या ख़तम हो जाएगा

नामो निशान |



कोई ताक़त है

नहीं है,

या सभी कुछ

स्व चालित है,

देखता है कोई

हमको हर घड़ी,

सब दिलासे हैं

जमाने के

या कुछ भी नहीं है,

क्या पता

सच है क्या,

और झूठ क्या है

क्या पता |



हम अकेले हैं

या कहीं कोई और है,

इतने बड़े

संसार में,

एक धरती ही

मिली

जीवन को बसने के लिए

या है कोई जीवन

किसी ओर भी

नक्षत्रा पर,

ये क्या पता

सच है क्या

और झूठ क्या है

क्या पता |



जो लिखा है

पोथियों में धर्म की

वो सच भी हैं,

या झूठ हैं

या किसी नादान

पंडित की

समझ की भूल हैं,

ये क्या पता

सच है क्या

और झूठ क्या है

क्या पता |



आदमी ,

आदम की है औलाद

या है

बंदरों की

झुटे हैं

सब के ये ख्यालत

ये किस को पता है

चाँद पर पहुँचा

भी है इंसान

या सब झूठ है

सच है क्या

और झूठ क्या है

क्या पता |

RAJIV JAYASWAL



THERE ARE MANY THING INL LIFE ABOUT WHOM WE ARE NEVER SURE, WHATEVER WE KNOW ABOUT THOSE THINGS ARE ON THE BASIS OF ASSUMPTIONS.

THOUGH HUMAN MIND HAS UNLIMITED CAPACITY BUT WE KNOW LITTLE ABOUT MANY SECRETS OF LIFE, UNIVERSE , LIFE AND DEATH.

MY THIS POEM REFLECTS THIS UNCERTAINITY.

20/05/2010

कहाँ रहता है वो |


हैरान हूँ मैं देख कर

कुदरत के खेल को,

कहाँ से आ रहे हैं सब,

कहाँ को जा रहे हैं सब

वो जाने कौन है,

जिस की है सारी खुदाई ये,

क्या जाने सोच कर उसने,

खुदाई ये बनाई है |



कहाँ रहता है वो मलिक

नज़र वो क्यों नहीं आता,

सितारे, चाँद, सूरज, धरती पर

उस की रहनुमाई है,

हरेक जरे में बसता तो

दिखाई क्यों नहीं देता,

हरेक को देखता हर ,

नज़र से रहता क्यों ओझल |



कितने रूप , कितने चेहरे

हर तरफ भीड़,हम अकेले

किसी भी रोज़ कोई,

बिन कहे चला जाता है

कितनी आवाज़ भी दो,

वापिस वो नहीं आता है

जिस जगह जाता है,

कुछ लेके नहीं जाता है

ऐसी दुनिया में तो अब,

रहने से डर लगता है,

भोर का देखा है सूरज

शाम का पता क्या है |



आज सब मिल के

खड़े हो जाओ,

आज सब मिल के

ये कसम खाओ,

एक दिन छोडो सभी कम

वहाँ सब मिल के चलो,

जहाँ से जाके

वापिस ना कोई आता है,

पता करे की है कौन

जो बुलाता है,

कहो सभी उस से

की ये चक्कर क्या है,

कहाँ ले जाता है सबको

और क्यों ले जाता है |


जीवन सत्य |


एक दिवस, माह बना

माह बने साल

साल से सदिया बनी

सदी बनी काल |



एक ब्रह्म

नाद बना

एक ओंकार

एक ओम

जीव बना

जीव से संसार |



अहम ब्रह्म

अहम जीव

अहम अहंकार

अहम झूट

अहम सत्य

अहम निराकार |



अहम राम

अहम कृष्ण

अहम सर्वधार

अहम जीव

अहम हरी

अहम ही संसार |



आदि सत्य

मध्य सत्य

सत्य वर्तमान

रात सत्य

दिवस सत्य

सत्य पहर चार

रूप सत्य

रंग सत्य

सत्य ये संसार

RAJIV JAYASWAL


हालेदिल |

ये शाम बहुत उदास सी है

दिल में कैसी अजीब प्यास सी है

क्या बताएँ तुम्हे हम हालेदिल

बहुत अकेले हैं, कोई तो जाए मिल |



किसी की आस में, ये उम्र सारी बीत गयी

किसी तलाश में ये मन, कहाँ कहाँ भटका

की कोई ये तो बता दे कभी भी आ के हमें

कभी मिलेगा वो की नहीं, किसी शहर में |



ना जाने कौन चुपके से हमें बुलाता है

किसी जगह वो हमको नज़र ना आता है

ये मेरे मन का भुलावा है,या कोई जादूगरी

कहीं कोई भी नहीं है, ये कैसी है नगरी |



क्या तुम को भो कोई आवाज़ आती है

किसी की याद तुम को कभी सताती है

क्या तुमने भी कोई वो ख्वाब देखा है

कहीं से आके कोई तुम को चूम लेता है |



जो मेरे साथ है, वो अपने से नहीं लगते

जो मुझ से दूर हैं, वो अपने हो नहीं सकते

कभी कहीं ऐसा सा कोई मिल जाए,

जिस से मिल के,मन को सुकून मिल जाए |



राजीव जायसवाल

जीवन सत्य |


कट कट कर कट रही घास

मन क्यों मेरा हुआ उदास,

सोचा ,

जीवन भी यूँ ही कट जाएगा,

कटा हुआ भाग कभी,

वापिस ना जुड़ पाएगा,

कट कट कर----------



उम्र भी घास तरह

कटती ही जाती है,

जीवन की डोर यूँ ही

कट कट, कट जाती है,

कल कल कर बहती है

नदिया की धार,

जल जो बह जाता है

घाट की देहरी छू के

वापिस ना आता है,

सागर के पास चला जाता है,

कट कट कर-----



भक भक कर भभक उठी

जंगल की आग,

जल जल कर कोयला हुए

पत्ते ओर घास,

जल गये जो पेड़

वो भी टूट के गिर जाते हैं,

फूल नहीं आते हैं

पत्ते नहीं आते हैं,

कट कट कर----



ढल ढल कर ढल जाता

यौवन अनमोल,

हर हर पल कम होता

जीवन् अनमोल,

थक थक कर थक जाती

मानव की देह,

लेकिन बढ़ता जाता

जीवन से नेह,

चल चल कर चल पड़ता

मंज़िल की ओर,

लेकिन कम होता ना

माया का शोर,

कट कट कर-----

राजीव जायसवाल

जीवन बहुत सुन्दर है, लेकिन मृत्यु भी निश्चित है , हर दिन जीवन के एक दिन को कम कर देता है | मेरी यह कविता इसी सत्य को बताने का प्रयास है |




बढ़ती उम्र और मन |

बढ़ने लगी उम्र

हमारी भी, तुम्हारी भी

थमने लगी है नब्ज़

हमारी भी, तुम्हारी भी

आओ जीने की कुछ वजह चुन लें

ढलने लगी है शाम

हमारी भी, तुम्हारी भी|



की आएगी ना लौट के

ये घड़ी बार बार

कुछ और दिन जो रह गए

उन को तो जी लो यार

ये बात मेरी सुन के

यूँ ना मुस्कुराइए

दो चार दिन की जिंदगी

ना यूँ गँवाइए|



मुद्दत के बाद फिर

किसी पे दिल ये आया है

मुद्दत के बाद मिलन का

सपना सजाया है,

अब आप मेरी बात को

बस मान जाइए

जो बीत गये पल ये

तो फिर ना पछताईए



ये उम्र का बढ़ना भी

बुरी बात है, ए दिल

ज्यों ज्यों दिया बुझने लगा

त्यों त्यों मिले मंज़िल

मंज़िल करीब आ गयी

तो बुझने लगा है

की, अब खुदा ने आने का

फरमान दिया है|



सोमवार, 15 अगस्त 2011

जिन्हें नाज़ है हिंद पर वे कहाँ हैं |


१५ अगस्त, १९४७---

आज़ादी मिल गयी
नाचो, गाओ
खुशी मनाओ
देश तुम्हारा
राज तुम्हारा
होगा सारा काज तुम्हारा
ज़ुल्म ना होगा
ग़ुरबत ना होगी
जनता ही अब
राज करेगी
मानव -मानव
भेद ना होगा
नाचो, गाओ
खुशी मनाओ |

१५ अगस्त, २०११---

राज भ्रष्ट
काज भ्रष्ट
जन ग़रीब
कोसे नसीब
सत्य दूर
स्वप्न चूर
बलात्कार
हाहाकार
पीड़ित जन
करते पुकार
भूखे, नंगे
भीषण दंगे |

आज़ादी का जश्न मनाओ
सब मिल जुल
झंडा फहराओ
ज़ोर से बोलो
सब जय हिंद
सब सोतों की
टूटे नींद
सब मिल जुल कर
हल्ला बोलो
भ्रष्ट तंत्र की
पोल को खोलो
राज तुम्हारा
ताज तुम्हारा
भ्रष्ट राज
अब नहीं गँवारा
छीन के लो
अपनी आज़ादी
दूर करो
अपनी बर्बादी |

राजीव जायसवाल
१५/०८/२०११
जिन्हें नाज़ है हिंद पर वे कहाँ हैं |

रविवार, 14 अगस्त 2011

मेरे मन कहाँ रहोगे |


मैं जब नहीं रहूँगा
मेरे मन कहाँ रहोगे
किस से बात करोगे
अपनी व्यथा कहोगे
मैं जब नहीं रहूँगा
मेरे मन कहाँ रहोगे |

मुझ से दूर चले जाओगे
या तुम मेरे साथ रहोगे
पॅंचतत्व तुम हो जाओगे
या तुम मेरे साथ जलोगे
मैं जब नहीं रहूँगा
मेरे मन कहाँ रहोगे |

मौन कभी क्या रह पाओगे
या खुद से ही बात करोगे
सदा मेरे तुम साथ रहे हो
गैर के किस के साथ रहोगे
मैं जब नहीं रहूँगा
मेरे मन कहाँ रहोगे |

जब से होश संभाला
तुम को ही पाया है
संग सखा तज गए
तुम ही ने साथ निभाया
अंत समय भी साथ रहोगे
या तुम मुझ से दूर चलोगे
मैं जब नहीं रहूँगा
मेरे मन कहाँ रहोगे |

राजीव जायसवाल
१४/०८/२०११
मैं मौन
मन मौन
मैं मन का
या मन मेरा
इस का जवाब देगा कौन |

शनिवार, 13 अगस्त 2011

हम को सब कुछ अजीब लगता है |

मुझ को सब कुछ अजीब लगता है

कोई दिल के करीब लगता है,

और कोई मीलों दूर लगता है,

कोई मिल कर भी मिल नही पाता,

बिन मिले कोई दिल में बसता है,

मुझ को सब कुछ--------



लोग कहते है, कुछ नहीं अपना

सच नही कुछ भी, जग है एक सपना,

सपना कितना हसीन लगता है,

कोई आता है, कोई जाता है,

क्यों कोई दिल को बहुत भाता है,

मुझ को सब कुछ----



उन को देखे, गुजर गये बरसों

क्यों ये लगता है, मिले कल परसों,

अब तो वो भी बदल गये होंगे,

हम को वो भूल भी गये होंगे,

फिर भी क्यों इंतज़ार लगता है,

जाग गया सोया प्यार लगता है,

मुझ को सब -------



हम मुक़द्दर से यूँही डरते रहे

कल क्या होगा की फ़िक्र करते रहे,

जो भी होना था, हो गया वो भी,

पहले जिंदा थे, जिंदा हैं अब भी,

क्यों ये दिल बेवज़ह धड़कता रहा,

प्यार को एक गुनाह समझता रहा,

मुझ को सब -----

राजीव जायसवाल

३१/०५/२०१०

मेरे दोस्त |

मेरे दोस्त

तुम्हारे आँखों की कोरों में

चमकते आँसुओं को

मैं देख सकता हूँ

पर उन्हें पोंछने की सामर्थ्य

मुझ में नहीं है,

इत्र से महकता मेरा कीमती रुमाल

तुम्हारे मैल कुचैले आँसुओं को

पोंछने के लिए तो नहीं है |

तुम्हें याद होगा

तुम्हारे यौवन की दोपहरी

मेरे घर की दहलीज़ पर

आकर रुक गयी थी

अपने तरकश के सभी विषैले बाणो से

मैने तुम्हारे संयम की परीक्षा ली थी ,

घोल दिया था , तुम्हारे शरीर में

सभ्यता और संस्कृति का जहर |



मेरे दोस्त

तुम येशू नहीं हो

लेकिन मैं जानता हूँ

की सलीब पर लगे रक्तिम छींटे

तुम्हारे रक़त के हैं

तुम्हारे वक्ष स्थल के कॅन्वस पर

अभी भी चित्रित है

मेरी अमानुषिकताओं के प्रमाण

मैं जानता हूँ

तुम्हारे अंतर का ज्वालामुखी

कभी भी धधक सकता है

तुम्हारी कटुता का गर्म लावा

मुझे आत्मसात कर सकता है

पूंजीवाद के कितने ही दुर्ग

एक के बाद एक

ढहते देख चुका हूँ

मुझे तुम से सहानुभूति है

केवल सहानुभूति

सहयता की अपेक्षा मुझ से करना

तुम्हारी मूर्खता है

तुम्हारी दीनता के कटोरे में

दो तीन मुट्ठी आटा तो मैं डाल सकता हूँ

ताकि उसे खा कर

तुम मेरी दया का गुणगान करते रहो |



मेरे दोस्त

सुना है

भूख से इंसान मर सकता है

लेकिन मैं तुम्हें

मरने नहीं दूँगा

क्योंकि की तुम्हारे शरीर के धरातल पर ही टिकी है

मेरे महल की आधारशिला

तुम्हारे चेहरे की झुर्रीयों में

समय के क्रूर हाथो ने

दीनता की जो करूण गाथा लिख दी है

उसे मैं पढ़ तो सकता हूँ

लेकिन पढ़ना नहीं चाहता

क्योंकि मुझे डर है

की उसे पढ़ने के बाद

मैं नक्सलवाद के

घने जंगलों में खो जाउँगा |

राजीव जायसवाल

देश को आज़ाद हुए ५७ साल हो गये हैं, लेकिन क्या हम को वही स्वराज मिला है, जिस के लिए कितने ही लोगों ने हंसते हंसते अपने प्राणो का उत्सर्ग कर दिया, आज भी ग़रीबी है, लाचारी है, बेबसी है, भुखमरी है |मएरी यह रचना हमारी उस मानसिकता को दिखाता है, जिस में हम क्रांति की, समाजवाद की, समतावाद की बड़ी बड़ी बातें वातानुकूलित कमरों में बैठ कर करते हैं |

राजीव जायसवाल








बचपन |

जाने कहाँ गये वो दिन

पिता का गुस्सा मा का प्यार,

दादी का वो लाड़ दुलार,

दोस्त यार, बचपन के खेल,

कभी लड़ाई, कभी था मेल,

जाने कहाँ-----

घर, बगिया, मेहंदी का पेड़

आँगन में पत्तों का ढेर,

सावन में पेड़ों पर झूले,

ये सब बातें कैसे भूलें ,

जाने कहाँ------



राखी पर बहना का प्यार

मेघा रिमझिम, ठंडी बयार ,

गली , आँगन में सोते लोग,

मीलों तक फैले वो खेत,

पनघट पर पानी की धार,

गरम अंगीठी, धुआ सफेद,

जाने कहाँ-----



चाचा, चाची, रिश्तेदार

कितना सब करते थे प्यार,

बचपन जाने कहाँ छुपा,

ऐसा गया, ना कभी मिला,

कोई तो बचपन ढ़ूढ के ला,

मुँह माँगे पैसे ले जा,

जब से बचपन चला गया,

मेरा मन एक दिन ना लगा,

जाने कहाँ----

क्या मालूम |

कौन किस को भूल गया

क्या मालूम

कौन किस से दूर गया

क्या मालूम |

हम तो वफ़ा ही करते रहे

क्यों जफ़ा का इल्ज़ाम लगा

क्या मालूम |

हम प्यार के पाबंद बहुत थे

वो हम से रज़ामंद बहुत थे

एक रोज वो क्यों बदल गये

क्या मालूम

हम उन पे यंकी करते रहे

हर बात उन की मरते रहे

क्यों वो बात से ही मुकर गये

क्या मालूम |



वो हम से माँग भर बैठे

हम उनको प्यार कर बैठे

एक रोज ये क्या बात हुई

क्यों नज़र से गिरा बैठे

क्या मालूम |



हम प्यार का दम भरते रहे

वो खेल हम से करते रहे

हम कैसे धोखा खा बैठे

क्या मालूम |



वो गैर के हो जाएँगे

क्या भूल हम को पाएँगे

जब प्यार का माहौल होगा

वो होश में ना रह पाएँ

वो चुप ना कहीं रह पाएँ

वो मुझ को ना भुला पाए

वो राज ना छुपा पाएँ

वो नाम मेरा ना ले लें

क्या मालूम




मन |


मन तो बंधन है

अंतर का द्वंद,

छन्द जीवन का |

अंग मुक्ति का

साधन है |



युक्ति का तन्त्र

अर्थ, काम, मोह, मोक्ष,

प्रयत्न जीवन पर्यंत |

सुख तो व्यंजन है

योग, रोग, भोग,

विरल ऐसा संयोग |



सूक्ष्म वायु के रंध्र

व्याप्त आयु की गंध |

युग तो मंचन है

पल भर का |



साँसों के पिंड अंग

मोह हुआ भंग,

जल में फेंका कंकर

कुछ पल उछली तरंग |


मेरा देश महान |

मेरा देश महान

रक्त से सना हुआ है बुद्ध,

नग्न भग्न द्रोपदी रोती है,

राम यहाँ रावण से डरता है,

कितनी ही सीता खोती हैं,

मेरा देश महान |



मेरा देश महान

गाँधी का रक्त बिकता है,

हिंसा के प्यालों में,

यौवन का दर्प कहाँ,

तेज कहाँ,

ढलता है , यौवन मदिरालयों में,

मेरा देश महान |





मेरा देश महान

जर्जर देह

,

भूखा पेट

आतंकित जन

,

करते विद्रोह

प्रजातंत्र से हटता मोह

,

भ्रस्टाचारी करते राज

,

जनता के करते ना काज

,

गुणी जनो का ना सम्मान

,

मेरा देश महान |

मेरा आव्हान है युवा शक्ति को ------



तम दूर करो

दस्तक दो

भोर के दरवाजे पर

जीवन की माँग में

सिंदूर भरो |



आयु की सीमा को लाँघ

प्रश्न जटिल सुलझाओ

उलझन में उलझा है देश मेरा

सुलझाओ

उलझन को सुलझाओ |



लोहे सा बदन करो

कितने भी संकट हों

मन को मगन करो

देश मेरा

फिर से उठ सकता है

यत्न करो , यत्न करो |



गाँधी सा सोचो

तुम गाँधी बन जाओगे

दीप बनो ऐसे

जो तूफान में जलते है

खूब जलो, खूब जलो

अंधियारा दूर करो |

राजीव जायसवाल


समर्पण |

तुम मुझ से

दूर कितने हो गये हो

बहुत नज़दीक होकर भी

कहीं पर खो गये हो |

कहो क्या बात

क्या मुझ से खफा हो

कोई जो ग़लती की हो

तो सज़ा दो

मेरा है कौन

बिन तुम बिन जहाँ में

तुम्हारे बिन करूँगी क्या

बता दो |



समर्पित तुम को तन मन

कर दिया था

समर्पित तुम को

जीवन कर दिया था

करूँ अब क्या समर्पण

ये बता दो

मुझे किस बात की

देते सज़ा हो |



मेरे मंदिर में

तुम्हारी ही है मूरत

मेरे मन में

तुम्हारी ही है सूरत

मेरी सब पूजा आरती

बस तुम ही हो

कोई प्रसाद मत दो

ना भले तुम

मगर मंदिर से

मूरत मत निकालो |



मुझे चाहो , ना चाहो

गम नहीं है

मेरी रुसवाइयां

कुछ कम नहीं हैं

मेरी हसरत में

चाहत बस तुम्हारी

मेरी चाहत में

हसरत बस तुम्हारी

मुझे एक बार बस

हंस कर निहारो |



तुम्हारे बिन |

किसी दिन आके देखो

मैं वही हूँ , आज भी,

सूरत बदल सी कुछ गयी है,

वही मंदिर, पुजारी भी वही है,

मूरत पुरानी , अब नही है|



तुम्हारे बिन

मैं कुछ दिन मर गया था,

मैं अपने आप से ही,

डर गया था,

अभी जिंदा हुआ हूँ,

अब ना मारो तुम,

ना इतने प्यार से,

मुझको पुकारो तुम |



तुम्हारे पास

मेरी कुछ अमानत,

रह गयी थी,

मेरी तस्वीर

तुम्हारे दिल में थी जो,

वहीं पर रह गयी थी,

बुरा था या भला

मैं जैसा भी था,

मुझको भुला दो तुम,

मेरी तस्वीर लौटा दो तुम |

वो मुझ से दूर जाना चाहते हैं |

वो मुझ से दूर जाना चाहते हैं

वो मुझ को भूल जाना चाहते हैं,

वो खुद से ही बहुत डरने लगे हैं,

वो मुझ से प्यार सा करने लगे हैं |



वो मेरे साथ रहना चाहते हैं

मुझे अपना बनाना चाहते हैं,

वो जब की हर हक़ीक़त जानते हैं,

मगर फिर भी ये हमसे माँगते हैं,

हमें हम से चुराना चाहते हैं |



वो कोयल की कुहुक सा बोलते हैं

मेरे अंतर में अमृत घोलते हैं,

मगर खुद जहर पीते जा रहे हैं,

वो खुद को यूँ मिटाता जा रहे हैं,

मुझे वो क्यों भुलाना चाहते हैं |



कभी कहते हैं , मुझे सब कुछ बता दो

तुम्हारे दिल में जो है, मुझे वो सब सुना दो,

कभी वो चुप कराना चाहते हैं,

बिना बोले सब कुछ बताना चाहते हैं |



मुझे भी खुद पे शक होने लगा है

मेरा भी दिल वहाँ खोने लगा है,

मैं उन की ही तरह होने लगा हूँ,

मैं उन के प्यार में खोने लगा हूँ |



राजीव जायसवाल

१०/०४/१०




मैं ही हूँ |


मैं अनंत में, अंतहीन हूँ



सीमित में भी,मैं असीम हूँ



निर्विकल्प हूँ, हूँ विकल्प भी



उजियारा मैं, अंधियारा भी हूँ



अंतरिक्ष में, सागर में हूँ



धरती और भवसागर में हूँ



कोटि जन्म में, अजन्म मैं ही हूँ



अंधियारा मैं, उजियारा भी हूँ



मैं ही जीवन, मृत्यु मैं ही हूँ



सदा बदलती ऋतु मैं ही हूँ



मैं ही दया और क्रूर भी मैं हूँ



भोग भी मैं, सन्यास मैं ही हूँ



तप भी मैं और विलास मैं ही हूँ



शीत भी मैं और ताप मैं ही हूँ



पुण्य भी मैं और पाप मैं ही हूँ



संयम मैं, सहवास मैं ही हूँ



हूँ विकार, निर्विकार मैं ही हूँ



हूँ कृतघ्न , उपकार भी मैं हूँ



अपमान मैं ही, सत्कार मैं ही हूँ

मैं भोगी ओर योगी मैं ही हूँ



स्वस्थ भी मैं, रोगी भी मैं हूँ



फल भी मैं, और कर्म भी मैं हूँ



रूप भी मैं, हूँ मई कुरूप भी

छाँव मैं ही, और हूँ मैं धूप भी



मैं सब में हूँ, मुझ में ही सब



कहीं नहीं, मैं व्याप्त दिशा सब



सब में मेरी ही परछाई



मैने ही ही ये सृष्टि बनाई



ओम मैं ही, ओंकार भी मैं हूँ



जीवन का आधार भी मैं हूँ |



राजीव जायसवाल

१२/०६/२०१०


मेरी पहली कविता--------MY FIRST POEM

शतुरमुर्ग सी टांग है

हाथी जैसे दाँत

लेकिन इन का

परिचय है

मिस्टर उमाकांत |

पढ़ते हैं नॉवेल ये

ज़ीरो ज़ीरो सेवेन

पर चूहे को देखकर होते

नाइन टू इलेवेन |

बच्चे इन से डरते हैं सब

क्रोध इन्हें आ जाए जब

शामत सब की आ जाती है

इन को शांत रखो रब |



यह कविता मैने छठी क्लास में लिखी थी जब मैं अर्वचिन स्कूल , दिल्ली में पढ़ता था |हमारी क्लास की टीचर उमा अरोड़ा जी थी, जिनसे हम सब बच्चे डरते थे और जो बहुत कड़क मिज़ाज़ थी |हमारे स्कूल की पत्रिका निकल रही थी, जिस के लिए हमको कविता या निबंध लिखने के लिए कहा गया, मुझे लगा की उमा जी से बदला लेने का यह अच्छा मौका है, सो मैने ये कविता लिख दी |इस को पढ़ने के बाद उमा जी ने मुझे अपने पास बुलाया और बड़े प्यार से पूछा की क्या यह कविता मैने उन पर लिखी है, मैं दर गया और मैने माफी माँगी लेकिन वो मुस्कुरा रही थी | मुझे नही पता की आज वे कहाँ पर हैं| मैं यह अपनी पहली कविता सम्मान के साथ उन को समर्पित करता हूँ |

राजीव जायसवाल

MY FIRST POEM



SHATURMURG SI TANG HAI

HATHI JAISE DANT

LEKIN INKA PARICHAY HAI

MR UMAKANT

PADHTE HAIN NOVEL YE

ZERO ZERO SEVEN

PAR CHUHE KO DEKH KAR

HOTE NINE TWO ELEVEN

BACHHE IN SE DARTE HAIN SAB

KRODH INHEIN AA JAYE JAB

SHAMAT SAB KI AA JATI HAI

IN KO SHANT RAKHO RAB .

I WROTE THIS POEM IN 6TH STANDARD, WHEN I WAS A STUDENT OF ARWACHIN SCHOOL DELHI. OUR CLASS TEACHER MS UMA ARORA WAS VERY STRICT . A SCHOOL MAGAZINE WAS GOING TO BE PUBLISHED AND WE WERE BEING ASKED TO GIVE ARTICLES FOR THAT , I THOUGHT THAT IT WAS A GOOD OPPORTUNITY TO EMBARASS HER AND I WROTE THESE LINES. AFTER READING THIS POEM SHE CALLED ME AND ASKED THE EXPLANATION. I BECAME SCARED AND APOLOGIZED BUT SHE WAS SMILING.

I DO NOT KNOW WHERE OUR MADAM IS NOW, BUT I DEDICATE THIS FIRST POEM OF MINE TO HER.

R J

शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

धरती का स्वयंबर |


धरती के स्वयंबर में भाग लेने आए हैं

आज नीले अंबर पे, मेघ काले छाए हैं

पवन बहे तेज़, रही वायु को भेज

कहे तारों के देश, बना फूलों की सेज



सूरज उदास चला, मुख को छुपाए

कहे धरती से, हाए कहे मुझ को जलाए

विरह से तपता तन, आग हुआ जाए

चला धरती से दूर, लिए मन में एक हाए |



देख सूरज उदास, कहा अंबर ने आज

काहे मन को जलाता है, आग हुआ जाता है

चल के तो देख, ज़रा स्वयंबर का खेल

कभी धरती के साथ हुआ मेघों का मेल |



हुआ स्वयंबर आरंभ, टूटा मेघों का दंभ

जो भी मन को लुभाए, वही धरती को भाए

देख मेघों का रंग, बोली धरती दबंग

नहीं करनी है शादी, मुझे काले के संग |



मेघ दुख से थर्राए, नैन आँसू भर लाए

टूटा मनवा का धीर, बहा नैनो से नीर

देख सूरज गंभीर हुआ, अंबर मुस्काए

विरही ही समझे है, विरही की पीर |



राजीव जायसवाल

जो सोचा था-सब मिला |


कभी सोचता था

वो होगी कौन

जो मेरे घर आएगी |



कभी सोचता था

छूउँगा उसे

वो कैसे शर्माएगी |



कभी सोचता था

की दो से चार

कभी हम हो जाएँगे |



कभी सोचता था

ना होगा क्लेश

हम इतना प्यार करेंगे |



जो सोचा था

सब मिला

तुम मेरी प्राण प्रिया हो |



जो सोचा था

सब मिला

तुम्हें जब छुआ

जैसा सोचा था

वैसा ही हुआ |



जो सोचा था

सब मिला

दो से हम तीन

तीन से चार हुए हैं |



जो सोचा था

सब मिला

नहीं कोई क्लेश

ना ही संदेह

है सिर्फ़ नेह

है सिर्फ़ स्नेह |



मेरी चिर संगिनी

तुम ही मेरी प्रीत

तुम ही मेरी मीत

मेरे जीवन् का

तुम ही संगीत |



राजीव जायसवाल



मेरी यह रचना मेरी सह धार्मिनी वंदना जायसवाल को समर्पित है, जिन की प्रेरणा ओर सहयोग से मैं जीवन में वो सब कर पा रहा हूँ, जो मैं करना चाहता था |

THIS POEM IS PRESENTED BELOW IN ROMAN SCRIPT---

KABHI SOCHTA THA

VO HOGI KAUN

JO MERE GHAR AEGI.



KABHI SOCHTA THA

CHU UNGA USEY

VO KAISE SHARMAEGI.



KABHI SOCHTA THA

KI DO SE CHAR

KABHI HUM HO JAENGE.



KABHI SOCHTA THA

NA HOGA KLESH

HUM ITNA PYAR KARENGE.



JO SOCHA

SAB MILA

TUMHI MERI PRAN PRIYA HO.





JO SOCHA

SAB MILA

DO SE HUM TEEN

TEEN SE CHAR HUE HAIN .



JO SOCHA

SAB MILA

NA HI KOI KLESH

NA HI SANDEH

HAI SIRF NEH

HAI SIRF SNEH.



MERI CHIR SANGINI

TUMHI MERI PRIT

TUM HI MERI MEET

MERE JIWAN KA

TUM HI SANGEET.



RAJIV JAYASWAL



THIS POEM IS DEDICATED TO MY DEAR WIFE VANDANA JAYASWAL, WHO IS MY MOTIVATION AND INSPIRATION.






























इतना अंतर क्यों है ?


कुछ कम नहीं है

है शरीर

हाथ भी है

पैर भी है

है दिमाग़ भी

मगर

एक माँगता है भीख

और

एक देता भीख है

इतना अंतर क्यों है ?



कुछ कम नहीं है

बुद्धि भी है

आत्मा है

चैतन्यता भी है

मगर

कोई डालता डाका

और

कोई रहता है भूखा

मगर

ना चोरी का ख़ाता

इतना अंतर क्यों है ?



कुछ कम नहीं है

रूप है

लावणय भी है

और यौवन भी

मगर

कोई देह के सौदे में

ना पल भर हिचकता है

और

कोई देह अपनी

छोड़ देता

मगर अस्मत नहीं देता

इतना अंतर क्यों है ?



कुछ कम नहीं है

कर्म भी है

मेधा भी है

है परिश्रम भी

मगर

कोई खींचतारिक्शा

तपती धूप में

और

कोई वातानुकूलित कार में चलता

इतना अंतर क्यों है ?



राजीव जायसवाल


हम यहाँ क्या कर रहे हैं ?


है सभी कुछ पूर्व निश्चित

तो हम यहाँ

क्या कर रहे हैं ?

कर्मों का परिणाम

मिलना है,

नहीं मिलना

ये सभी कुछ

पूर्व कर्मों पर है आधारित,

तो हम यहाँ

क्या कर रहे हैं ?



स्वास्थ्य का

व्यापार का

बनना , बिगड़ना

मित्रों से व्यवहार का

बनना, बिगड़ना

घर से या परिवार से

मिलना, बिछड़ना

है सभी कुछ पूर्व निश्चित

तो हम यहाँ

क्या कर रहे हैं ?



कल में क्या होगा

किस पल में

क्या होगा,

हर घड़ी, हर पल

रहता हमारा

मन विकल,

ठीक बीतेगा

हमारा कल

या नहीं

अनिश्चितता की

लटकती सर पे सदा तलवार

तो हम यहाँ

क्या कर रहे हैं ?



कर्म होगा

या ना होगा

फल मिलेगा

ना मिलेगा

कर्म होना भी

नहीं निश्चित

फल का मिलना भी

नहीं निश्चित

है सभी कुछ

गर विधि के हाथ

तो हम यहाँ

क्या कर रहे हैं ?



राजीव जायसवाल

this poem is presented below in roman script-------

HAI SABHI KUCH PURVA NISCHIT

TO HUM YAHAN

KYA KAR RAHE HAIN

KARMON KA PARINAM

MILNA HAI

NAHIN MILNA

YE SABHI KUCH

PURVA KARMO PAR

HAI ADHARIT

TO HUM YAHAN

KYA KAR RAHE HAIN.



SWASTHYA KA

VYAPAR KA

BAN NA YA BIGDNA.

MITRON SE VYAVHAR KA

BAN NA , BIGDNA

GHAR SE YA PARIVAR SE

MILNA , BICHADNA

HAI SABHI KUCH PURVA NISCHIT

TO HUM YAHAN

KYA KAR RAHE HAIN.





KAL MEIN KYA HOGA

KIS PAL MEIN KYA HOGA

HAR GHADI

HAR PAL

RAHTA HAMARA MAAN VIKAL

THEEK BEETEGA

HAMAR KAL

YA NAHIN

ANISCHIT TA KI

LATAKTI SIR PAR SADA TALWAR

TO HUM YAHAN

KYA KAR RAHE HAIN.





KARM HOGA

YA NA HOGA

FAL MILEGA NA MILEGA

KARM KARNA BHI

NAHIN NISCHIT

FAL KA PANA BHI

ANISCHIT HAI

HAI SABHI KUCH GAR

VIDHI KE HATH

TO HUM YAHAN

KYA KAR RAHE HAIN







RAJIV JAYASWAL


सारा जीवन पढ़त गँवाया |

सारा जीवन पढ़त गँवाया

पढ़त पढ़त , पंडित कहलाया

अब सोचा तो समझ ये आया

की कुछ भी मैं समझ ना पाया |



मुण्ड मुंडाए कोई हर ध्याए

केश बढ़ा कोई प्रभ गुण गाए

हर खोजन कोई वन वन जाए

बन बैरागी अलख जगाए |



केश लोच , कोई करे तपस्या

साधु बन कोई माँगे भिक्षा

कोई जन तीरथ तीरथ जाए

सिद्ध योगी को शीश नवाए |



शंख बजा कोई शिव को ध्याए

तिलक लगा पंडित कहलाए

प्रभु अवतार की कथा सुनाए

झूम झूम हर के गुण गाए |



चार पहर कोई करे अज़ान

मन अंतर कोई जपे हर नाम

कोई प्रभु येशू के गुण गाए

गुरु ग्रंथ कोई शीश नवाए |



कोई कुण्डलिनी ध्यान लगाए

सहज योग की विधि बताए

कोई भोग में योग को चाहे

कृष्ण कन्हाई कोई मन भाए |



मूढ़मति मैं समझ ना पाउँ

मैं किस विधि से हर को ध्याउँ

कैसे मैं प्रभ दर्शन पाउँ

अंतर ज्ञान की ज्योत जगाउँ |



राजीव जायसवाल

ऐसा कोई ना मिले प्रभु मिलन का गीत

तन मन भूले हिरण जो

सुने बधिक का गीत |



THIS POEM IS PRESENTED BELOW IN ROMAN SCRIPT----

SARA JIWAN PADHAT GAWAYA

PADHAT PADHAT PANDIT KAHLAYA

AB SOCHA TO SAMAJH YE AYA

KI KUCH BHI MAIN SAMAJH NA PAYA



MUND MUNDA KOI HAR KO DHYAYE

KESH BADHA KOI PRABH GUN GAYE

HAR KHOJAN KOI BAN BAN DHYAYE

BAN BAIRAGI ALAKH JAGAYE



KESH LOCH KOI KARE TAPASYA

SADHU BAN KOI MANGE BHIKSA

KOI TEERATH TEERATH JAYE

SIDH YOGI KO SEESH NAVAYE.





SANKH BAJA KOI SHANKAR DHYAYE

TILAK LAGA PANDIT KAHLAYE

PRABH AWTAR KI KATHA SUNAYE

JHOOM JHOOM HAR KE GUN GAYE



CHAR PAHAR KOI KARE AJANA

MAN ANTAR KOI JAPE HAR NAMA

KOI PRABH YESU KE GUN GAYE

KRISHAN KANHAI KOI MAN BHAYE



KOI KUNDALINI DHYAN LAGAYE

SAHAJ YOG KI VIDHI SIKHLAYE

GRANTH GURU KOI SEESH NAVAYE.

KOI BHOG MEIN YOG KO PAYE.



MUDH MATI MAIN SAMAJH NA PAUN

MAIN KIS VIDHI SE HAR KO DHYAUN

KAISE MAIN PRABH DARSHAN PAUN

ANTAR GYAN KI JYOT JALAUN.



RAJIV JAYASWAL



GOD IS ONE, REMEMBERED BY MANY PERSONS IN DIFFERENT WAYS, I AM CONFUSED, WHICH WAY I SHOULD FOLLOW TO FIND HIM ?




आज कवि तुम कुछ भी लिख दो |

आज कवि तुम कुछ भी लिख दो

जीवन में इतना कुछ है

जिस को देखो हुआ बावरा

कौन यहाँ देखा खुश है

जित देखा उत दुख ही दुख है

कहाँ छुपा जाने सुख है

आज कवि तुम----



इस को पा लें, उस को पा लें

जिस को चाहें, उस को पा लें

कौन भला कब हुआ किसी का

सदा कौन कब बँधा किसी से

जिस को पाया आज किसी ने

दे जाता कल, वो दुख है

आज कवि तुम------



बचपन से यौवन तक भागा

इस जग में मन इतना लागा

भूल गया है जाना एक दिन

अब रोया जब , दिखा बुढ़ापा

मन भी कितना मूरख है

आज कवि तुम-------



THIS POEM IN ROMAN SCRIPT, PRESENTED BELOW-----

AJ KAVI TUM KUCH BHI LIKH DO

JIWAN MEIN ITNA KUCH HAI

JIS KO DEKHO HUA BAWRA

KAUN YAHAN DEKHA KHUSH HAI

JIT DEKHA UT DUKH HI DUKH HAI

KAHAN CHUPA JANE SUKH HAI

AJ KAVI TUM----------



IS KO PA LEIN , US KO PA LEIN

JIS KO CHAHEIN, US KO PA LEIN

KAUN BHALA KAB HUA KISI KA

SADA KAUN KAB BANDHA KISI KE

JIS KO PAYA AJ KISI NE

DE JATA KAL VO DUKH HAI

AJ KAVI TUM-------------



BACHPAN SE YOVAN TAK BHAGA

YOVAN MEIN MANN ITNA LAGA

BHUL GAYA HAI JANA EK DIN

AB ROYE JAB DIKHA BUDHAPA

MANN BHI KITNA MURAKH HAI

AJ KAVI TUM----------------



RAJIV JAYASWAL


एक दिन |

एक दिन पत्ता बन उड़ जाएँगे

नहीं वृक्ष से जुड़ कभी पाएँगे

एक दिन बन के बूँद बह जाएँगे

सागर में जो मिले, नदी में ना आएँगे |

एक दिन सपना बन ही दिख पाएँगे

खुली आँख से देखोगे तो नज़र नहीं आएँगे |



एक दिन शून्य बन बिखर जाएँगे

हम ना होंगे कहीं अलग से जो ढूढोगे

किसी अंक के साथ तालिका में पाओगे

एक दिन तुम्हें हम याद बहुत आएँगे

आँख बंद कर देखोगे तो झट से दिख जाएँगे |



एक दिन फोटो बन टॅंग जाएँगे

आने वाली नस्लों के हम पूर्वज बन जाएँगे

होंगे हम भी वहीं कहीं पर

खुद को पर पहचान नहीं पाएँगे

एक दिन अक्षर बन लिख जाएँगे

कविता बन कर पन्नों पर छप जाएँगे

शब्द जो हम ने आज लिखे हैं

सदियों बाद किसी पुस्तक में मिल पाएँगे |



एक दिन अंधियारा बन छा जाएँगे

खुली आँख को नज़र ना आ पाएँगे

दीपक की लौ में लौ बन जल जाएँगे |

अग्नि का सह ताप धुआँ बन उड़ जाएँगे

बादल बन फिर उसी अगन पर बरस जाएँगे

बुझा अगन हो मगन भाप बन उड़ जाएँगे |







एक दिन कहीं ना मिल पाएँगे

दूर किसी घर में जाकर के बस जाएँगे

नव शरीर , नव जीवन हम पा जाएँगे

जन्म मरण के चक्र का हिस्सा बन जाएँगे

कर्म भोग पिछले जन्मों के निबटाएँगे |

राजीव जायसवाल

१६/०६/२०१०



THIS POEM IS PRESENTED BELOW IN ROMAN SCRIPT-----------------



EK DIN PATTA BAN UD JAYENGE

NAHIN VRIKSH SE JUD PAYENGE

EK DIN BAN KE BUND BAH JAYENGE

SAGAR SE JA MILENGE, NADI MEIN NA AYENGE

EK DIN SAPNA BAN HI DIKH PAYENGE

KHULI ANKH SE JO DEKHOGE

NAJAR NAHIN AYENGE.





EK DIN SHUNYA BAN BIKHAR JAYENGE

HUM NA HONGE KAHIN ALAG SE JO DHUNDHOGE

KISI ANK KE SATH TALIKA MEIN HI PAOGE

EK DIN TUMHEN HUM YAD BAHUT AYENGE

ANKH BAND KARKE DEKHOGE

JHAT SE DIKH JAYENGE.



EK DIN PHOTO BAN KAR TANG JAYENGE

ANEY WALI NASLON KE HUM PURWAJ KAHLAENGE

HONGE HUM BHI VAHIN KAHIN PAR

KHUD KO PAR HUM PAHCHAN NAHIN PAENGE

EK DIN AKSHAR BAN HUM LIKHE JAYENGE

KAVITA BAN PANNO PAR CHAP JAYENGE

SHABD JO HUMNE AJ LIKHE HAIN

SADIYON BAD KISI PUSTAK MEIN MIL PAYENGE.





EK DIN ANDHIYARA BAN CHHA JAYENGE

KHULI ANKH KO NAJAR NAHIN AYENGE

DEEPAK KI LOU MEIN LOU BANKAR KE JAL JAYENGE

AGNI KA SAH TAP BAN DHUP BAN UD JAYENGE

BADAL BAN PHIR USI AGAN PAR BARAS JAYENGE

BUJHA AGAN HO MAGAN , AG BAN UD JAYENGE.



EK DIN HUM , KAHIN NA MIL PAYENGE

DUR KISI GHAR JAKAR KE BAS JAYENGE

NAV SHARIR, NAV JIWAN HUM PA JAYENGE



JANAM MARAN KE CHAKRA KA HISSA BAN JAYENGE

KARAM BHOG PICHLEY JANMON KE NIBTAYENGE.





R J

16/06/10






कोई तो होगा |

ए खुदा

मोहब्बत क्यों बनाई तूने

अपनी दुनिया में

क्यों ये आग लगाई तूने |



तेरा भी दिल है

क्या तूने मोहब्बत की है ?

कोई तो होगा

जिसे दिल अपनें में जगह दी है ?

कोई तो होगा

तूने जिस की इबादत की है ?

कोई तो होगा

तेरी नज़रों में

जो बसा होगा ?

उसी की तुझ को कसम है

जुदा कोई ना हो |

करे जो प्यार

उस का तू निगेहबा हो |

करे जो प्यार

तेरी सरपरस्ती हो |



कोई भी प्यार करे

कोई भी इज़हार करे |

तेरा क़ानून हो

ना कोई भी इन्कार करे |

तेरी दुनिया

बहुत ही खूबसूरत हो जाए

जिसे जो प्यार करे

उस में तू नज़र आए |


कहाँ गये वो |

कहाँ गये वो

कल तक थे जो

साथ हमारे,

छोड़ गये क्यों

साथ हमारे |

बचपन से यौवन तक

पकड़े हाथ हमारे

दिए सहारे,

छोड़ गये क्यों

बीच सफ़र में,

मीत हमारे,सखा हमारे |

जिन चेहरों को

हम तकते थे

सांझ सकारे,

नयन हमारे

देख सके ना

उन चेहरों को

बीत गये दिन

कितने सारे |

दिन बीते

दिन पर दिन बीते

तुम बिन सब दिन

रीते रीते,

आई होली, गयी दीवाली

अपना अंगना

खाली खाली |

कहाँ गये तुम

ना आने को,

नयन हमारे

रो रो हारे,

मीत हमारे, सखा हमारे,

राह तकत हैं

सांझ सकारे |

जीते क्यों हैं

मरते क्यों हैं

सब मरने से

डरते क्यों हैं.

मिलते और बिछड़ते क्यों हैं

बनते और बिगड़ते क्यों हैं |

इस जीवन का

मतलब क्या है

सब कुछ क्यों

बेमतलब सा है

कौन खुदा है

कौन विधाता

सब सृष्टि को

कौन बनाता

राजीव जायसवाल

मेरी यह कविता मेरी दादी, चाचा जी और चाची को समर्पित है, जिनके प्यार से मेरा बचपन गुलज़ार रहा , लेकिन जो अब इस दुनिया में नहीं हैं |

२४/०६/२०१०