सोमवार, 22 अगस्त 2011

हम से सीखो |

उपर उपर हंसते रहना

गहराई में रो लेना

अंतर में जब भड़के ज्वाला

आँसुवन झील डुबो देना

कितना हो कोलाहल मन में

बन मौन हलाहल पी जाना

हम से सीखो घुट घुट जीना

हम से सीखो गम को पीना

हम से सीखो प्यार निभाना

निभा निभा, खुद ही मिट जाना |

हम ने कितने जख्म छुपाए

सितम सहे, लब उफ़ ना लाए

हंसकर दुख सारे सह जाए

उन का नाम ना लब पर लाए

हम से सीखो, ना कुछ कहना

हम से सीखो, चुप ही रहना |

उजियारे में दिए जलाना

आँधियारे में बुझा देना

कोई देख पाए ना हम को

सौ पर्दों में छुप जाना

नाम कोई ना पूछे उन का

उन का नाम भुला देना

हम से सीखो प्यार निभाना

निभा निभा कर मिट जाना

फिर भी है इल्ज़ाम हमीं पर

उल्फ़त से रुसवाई का

जफ़ा उन्हीं की, बेरूख़ी उन्ही की

हम पर दोष बेवफ़ाई का

हम से सीखो , तोहमत सुन कर

चुप रहने की आदत को

हम से सीखो

सब कुछ सह कर

सह जाने की हिम्मत को.

राजीव जायसवाल

२०/०६/२०१०


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