
रोज उठना
काम करना
कर के थकना
थक के सो जाना,
थक गया हूँ मैं
रोज जगने से
रोज सोने से,
थक गया हूँ मैं
इस विधा से
इस विधि से |
जब से आया हूँ
मैं इस धरती पे
हो रहा है यही,
जाने कब तक हो
रोज उजियारा
रोज अंधियारा,
कुछ नया अब हो
ना ये सोना हो
ना ये जगना हो
ना ये थकना हो |
ऐसा कुछ तो हो
कुछ नया सा हो
ना ये सोना हो
ना ये जागना हो,
कुछ तो ऐसा हो
कुछ नया सा हो,
जाने कैसा हो
रोज का ये क्रम
एक दिन टूटे,
मेरे मन का भ्रम
एक दिन टूटे |
ऐसी दुनिया हो
लोग भी ना हों
शोर भी ना हो,
ना कहें हम कुछ
ना कोई कुछ कहे,
सब कहीं खो जाए
कुछ नया हो जाए,
ना अंधेरा हो
ना उजाला हो,
कुछ तो ऐसा हो
जाने कैसा हो |
काश ऐसा हो
जाने कैसा हो
कैसे मैं बतलाउँ
कैसे मैं समझाउँ,
मन मेरे क्या हो
कुछ नया सा हो,
ना जन्म ही हो
ना मरण ही हो,
गर्भ में माँ के
ना शरण ही हो,
कुछ तो ऐसा हो
कुछ नया सा हो |
बार बार जन्म होना, बार बार मरण होना, थक गया हूँ मैं | कुछ नया सा हो, जाने कैसा हो |
राजीव जायसवाल
०३/०९/२०१०
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