शनिवार, 21 जनवरी 2012

तू ही तू |

कौन चलाता
कौन बिठाता
कौन उठाता
कौन गिराता
कौन रुलाता
कौन हँसाता |

कौन
हृदय बन कर धड़काता
कौन
नयन बन कर फड़काता
कौन
मेघ बन, जल बरसाता
कौन
इत्र बन कर महकाता
कौन
अगन बन, आग जलाता
कौन
पवन बन , झूल झुलाता
कौन
बर्फ बन, हाड गलाता |

कौन
पंडित
कौन
पुजारी
कौन
राजा
कौन
भिखारी
कौन
हिरण
कौन
शिकारी
कौन
दवा
कौन
बीमारी
कौन
गुरु
कौन
चेला
कौन
पुरातन
कौन
नवेला

कौन
सूर्य बन, ताप तपाता
कौन
वीर्य बन, भ्रूण में जाता
कौन
गर्भ में, पालन करता
कौन
मृत्यु बन, जीवन हरता
कौन
करन , करावन, कर्ता
कौन
सकल दुखों का हरता |

कौन
मूर्ख
कौन
ज्ञानी
कौन
अकर्ता
कौन
कर्ता
कौन
प्रजा
कौन
स्वामी |

राजीव जायसवाल
२०/०१/२०१२

तू ही तू है, तू ही तू |
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रविवार, 15 जनवरी 2012

मैं , क्षणिक सा हूँ |

मैं
क्षणिक सा हूँ
ओस की ज्यों बूँद
पत्तों पर,
मोती सा दिखता हूँ
लेकिन
बरसात में बरसा  ज्यों  पानी
मैं
धरा पर हूँ |

मैं
पथिक सा हूँ
घर में रहता हूँ
मगर
घर का मलिक  मैं नहीं हूँ
मैं
चकित सा हूँ |

मैं
व्यथित  सा हूँ
खुश नज़र आता हूँ
लेकिन
खुश नहीं हूँ मैं
मैं
ना जाने क्यों
भ्रमित सा हूँ |

राजीव जायसवाल
१५/०१/२०१२

शनिवार, 14 जनवरी 2012

जब ,तुम मेरी हो जाती हो |

जब
रात बहुत गहराती है
जब
बात , मौन हो जाती है
जब
नज़रों से तुम कहती हो
जब
तुम , मुझ में खो जाती हो
जब
बिन सोए , सो जाती हो
जब
मादकता इठलाती है
जब
सांस, सांस मिल जाती है
जब
दिल धक धक कर चलता है
जब
कामुकता , मुस्काती है
जब
देह, देह से मिलती है
जब
आग , ज्वलित हो जाती है

जब
तुम, मुझ में खो जाती हो
जब
तुम , मेरी हो जाती हो
तब
इंद्रधनुष छा जाता है
तब
सब कुछ ज्यों खो जाता है
तब
ज्वाला देह, काला मेघ बन जाती है |
तब
बिन समाधि के, ज्यों समाधि लग जाती है |

राजीव जायसवाल
१४/०१/२०१२








सोमवार, 9 जनवरी 2012

मैं ही मैं , बस मैं ही मैं |

जल में, थल में
काल में, पल में
धरती में, समुद्र में
नर्क में , स्वर्ग में
हिंद में, अरब में
राग में , मल्हार में
तोप में, तलवार में
पूजा में, नमाज़ में
ध्यान में, सहवास में
मैं ही मैं , बस मैं ही मैं |

सागर में, गागर में
आकाश में, भवसागर में
अर्थ में , व्यर्थ में
स्वर्ग में, नर्क में
हँसी में, रुदन में
बेड़ी में, आभूषण में
सुगंध में, दुर्गंध में
पतझड़ में, बसंत में
मैं ही मैं , बस मैं ही मैं |

राख में, खाक में
दूर में, पास में
चोर में, संत में
पतझड़ में , बसंत में
रोग में, भोग में
सत्य में, ढोंग में
प्यार में, प्रहार में
विचार में, विकार में
मैं ही मैं , बस मैं ही मैं |

चींटी में, हाथी में
शत्रु में, साथी में
माता में, पिता में
सेज में, चिता में
रोग में, सोग में
भूख में, भोज में
 जेल में, रेल में
मेले में, ठेले में
घर में, बाज़ार में
पैदल में, कार में
मंदिर में, गुरुद्वारे में
दुखी में, बेचारे में
मैं ही मैं , बस मैं ही मैं |

उदय में, अस्त में
जीत में, पस्त में
खाली में, व्यस्त में
निर्मित में, ध्वस्त में
चुप में, वाचाल में
आग में, भूचाल में
दिवस में , रात्रि में
युद्ध में , शांति में
हवन में, होम में
पाताल में, व्योम में
मैं ही मैं , बस मैं ही मैं |


राजीव जायसवाल
०८/०१/२०१२





गुरुवार, 5 जनवरी 2012

सुन रे मन ,अब मेरी सुन |

मेरे मन सुन
अब मेरी सुन |
जब से होश संभाला मैने
तेरी बक बक
रहा हूँ सुन
सुन ले
अब ना और सुनूँगा
अब तू मेरी
बातें सुन |

मेरे मन सुन
सुन झरने की
झर झर सुन
सुन , सागर का
गर्जन सुन
सुन ,कलियों का
गायन सुन
सुन ,इंद्रधनुष का
वंदन सुन |

चुप हो
एक पल तो
चुप हो
तेरी बक बक
ना रहा मैं सुन
सुन रे मन
अब मेरी सुन |

राजीव
०५/०१/२०१२