शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

सपनों में जो मिले |


सपनों में जो मिले

बिछड़ गये,

उन को ढ़ूढा करता हूँ |

रहे मेरे जो संग रात भर,

उन की तलाश करता हूँ |



जग सपना

सपने में सपना,

कौन पराया,

कौन है अपना |

कभी है मिलना,

कभी बिछड़ना |

जो मिलते हैं सपनो में,

मैं याद उन्हें भी करता हूँ |

सपनों में जो मिले

बिछड़ गये,

उन को ढ़ूढा करता हूँ |



बहुत पास वो रहे रात भर

जो सपनो के साथी थे,

जाने आए कौन दिशा से,

आँधियारे के साथी थे ,

भोर हुई

गये कौन दिशा को,

ये ही सोचा करता हूँ |

सपनों में जो मिले

बिछड़ गये

उन को ढ़ूढा करता हूँ |



राजीव जायसवाल

यह जीवन एक सपने की तरह होता है, कितने लोग मिलते हैं, कुछ से दोबारा मिलना होता है, कुछ लोग कभी नहीं मिलते |

कुछ लोग याद रह जाते हैं, कुछ लोग भूल जाते हैं |

सपनों में भी हम बहुत से लोगों से मिलते हैं, कुछ चेहरे जाने से, कुछ अंजाने से |मेरी यह कविता मेरे उन स्वपन साथियों को समर्पित है |


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