
सपनों में जो मिले
बिछड़ गये,
उन को ढ़ूढा करता हूँ |
रहे मेरे जो संग रात भर,
उन की तलाश करता हूँ |
जग सपना
सपने में सपना,
कौन पराया,
कौन है अपना |
कभी है मिलना,
कभी बिछड़ना |
जो मिलते हैं सपनो में,
मैं याद उन्हें भी करता हूँ |
सपनों में जो मिले
बिछड़ गये,
उन को ढ़ूढा करता हूँ |
बहुत पास वो रहे रात भर
जो सपनो के साथी थे,
जाने आए कौन दिशा से,
आँधियारे के साथी थे ,
भोर हुई
गये कौन दिशा को,
ये ही सोचा करता हूँ |
सपनों में जो मिले
बिछड़ गये
उन को ढ़ूढा करता हूँ |
राजीव जायसवाल
यह जीवन एक सपने की तरह होता है, कितने लोग मिलते हैं, कुछ से दोबारा मिलना होता है, कुछ लोग कभी नहीं मिलते |
कुछ लोग याद रह जाते हैं, कुछ लोग भूल जाते हैं |
सपनों में भी हम बहुत से लोगों से मिलते हैं, कुछ चेहरे जाने से, कुछ अंजाने से |मेरी यह कविता मेरे उन स्वपन साथियों को समर्पित है |
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