शनिवार, 13 अगस्त 2011

मैं ही हूँ |


मैं अनंत में, अंतहीन हूँ



सीमित में भी,मैं असीम हूँ



निर्विकल्प हूँ, हूँ विकल्प भी



उजियारा मैं, अंधियारा भी हूँ



अंतरिक्ष में, सागर में हूँ



धरती और भवसागर में हूँ



कोटि जन्म में, अजन्म मैं ही हूँ



अंधियारा मैं, उजियारा भी हूँ



मैं ही जीवन, मृत्यु मैं ही हूँ



सदा बदलती ऋतु मैं ही हूँ



मैं ही दया और क्रूर भी मैं हूँ



भोग भी मैं, सन्यास मैं ही हूँ



तप भी मैं और विलास मैं ही हूँ



शीत भी मैं और ताप मैं ही हूँ



पुण्य भी मैं और पाप मैं ही हूँ



संयम मैं, सहवास मैं ही हूँ



हूँ विकार, निर्विकार मैं ही हूँ



हूँ कृतघ्न , उपकार भी मैं हूँ



अपमान मैं ही, सत्कार मैं ही हूँ

मैं भोगी ओर योगी मैं ही हूँ



स्वस्थ भी मैं, रोगी भी मैं हूँ



फल भी मैं, और कर्म भी मैं हूँ



रूप भी मैं, हूँ मई कुरूप भी

छाँव मैं ही, और हूँ मैं धूप भी



मैं सब में हूँ, मुझ में ही सब



कहीं नहीं, मैं व्याप्त दिशा सब



सब में मेरी ही परछाई



मैने ही ही ये सृष्टि बनाई



ओम मैं ही, ओंकार भी मैं हूँ



जीवन का आधार भी मैं हूँ |



राजीव जायसवाल

१२/०६/२०१०


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