मंगलवार, 2 अगस्त 2011

मेरा मन कहता है मुझ से |


मेरा मन

कहता है मुझ से

बार बार,

उस का कर आलिंगन

उस का ही

कर वरण,

जिस का

ना है जनम

ना ही जिस का मरण |



जो अनादि और अनंत

जिस का

ना है प्रारंभ,

ना ही जिस का है अंत,

मेरा मन

कहता है मुझ से

बार बार |



जिस के

ये दिग-दिगंत

जिस के

ये पहर चार

जिस के

ये रात भोर

जिस का

चहूँ ओर शोर

उस से ही

रख संबंध

उस से ही

रख व्यवहार |



उस का ही

मंथन कर,

उस का ही

कर विचार,

उस का ही

पूजन कर,

उस का ही

कर प्रचार,

अगम, सुगम,निर्विकार,

महत जिस की

लिख ना सके,

कोई भी रचनाकार,

मेरा मन

कहता है मुझ से

बार बार |



राजीव जायसवाल

०५/१२/२०१०

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें