मंगलवार, 2 अगस्त 2011

ना मेरी , मैं रहे |


मरना क्या है

जीना क्या है

मिलना और

बिछड़ना क्या है

आना क्या है

जाना क्या है

खोना क्या है

पाना क्या है

नाम जपन से

क्या होता है

हर सिमरन से

क्या होता है|



मेरा मन

बिल्कुल अज्ञानी

जिसने कही

उसी की मानी

अब थक गया

मैं इन बातों से

सोया नहीं

कई रातों से

किस विध से

सब भ्रम

मिट जाएँ

ना मैं रहूं

ना मेरी

मैं रह जाए |



मेरे भीतर

राम रमय्या,

मेरे भीतर

कृष्ण कन्हय्या,

मेरे भीतर

मथुरा काशी,

मेरे भीतर

घट घट वासी,

फिर काहे

मैं बन बन जाउँ,

तीरथ तीरथ

ढोक लगाउँ,

मीत मेरा

मुझ ही में वासा,

काहे फिर मैं

इत उत जासा |



राजीव जायसवाल

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