मंगलवार, 9 अगस्त 2011

रात भर |


रात भर
मैं भी जागा
तुम भी जागी
रात भर
राह देखी
तुम ने मेरी
मैं तुम्हारी,
तुम ना आईं
मैं भी तुम तक
जा ना पाया
वक़्त दोनो ने गवाया
रात भर |

रात भर
आग भड़की,
बुझ गयी,
राख बनकर |
रात भर
बात निकली,
तुम ने भी की
हम ने भी की.
ना मेरी
तुम तलक पहुँची,
ना तेरी
मुझ तलक पहुँची,
रात भर |

राजीव जायसवाल
०९/०८/२०११

11 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया ....अच्छा लगा आपकी यह रचना पढ़ कर

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  2. बहुत सुंदर ....मन की वेदना ...बहुत अच्छे से दर्शायी है ...!!

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  3. रात भर
    आग भड़की,
    बुझ गयी,
    राख बनकर |
    रात भर
    बात निकली,
    तुम ने भी की
    हम ने भी की.
    ना मेरी
    तुम तलक पहुँची,
    ना तेरी
    मुझ तलक पहुँची,
    रात भर |
    waah bahut khobb rat bhi beet gayi aur baat bhi .....sunder prastuti .aabhar

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  4. धन्यवाद, निधि जी, मेरी अन्य रचनाओं पर भी अपनी राय दें |

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