
कभी सोचता था
वो होगी कौन
जो मेरे घर आएगी |
कभी सोचता था
छूउँगा उसे
वो कैसे शर्माएगी |
कभी सोचता था
की दो से चार
कभी हम हो जाएँगे |
कभी सोचता था
ना होगा क्लेश
हम इतना प्यार करेंगे |
जो सोचा था
सब मिला
तुम मेरी प्राण प्रिया हो |
जो सोचा था
सब मिला
तुम्हें जब छुआ
जैसा सोचा था
वैसा ही हुआ |
जो सोचा था
सब मिला
दो से हम तीन
तीन से चार हुए हैं |
जो सोचा था
सब मिला
नहीं कोई क्लेश
ना ही संदेह
है सिर्फ़ नेह
है सिर्फ़ स्नेह |
मेरी चिर संगिनी
तुम ही मेरी प्रीत
तुम ही मेरी मीत
मेरे जीवन् का
तुम ही संगीत |
राजीव जायसवाल
मेरी यह रचना मेरी सह धार्मिनी वंदना जायसवाल को समर्पित है, जिन की प्रेरणा ओर सहयोग से मैं जीवन में वो सब कर पा रहा हूँ, जो मैं करना चाहता था |
THIS POEM IS PRESENTED BELOW IN ROMAN SCRIPT---
KABHI SOCHTA THA
VO HOGI KAUN
JO MERE GHAR AEGI.
KABHI SOCHTA THA
CHU UNGA USEY
VO KAISE SHARMAEGI.
KABHI SOCHTA THA
KI DO SE CHAR
KABHI HUM HO JAENGE.
KABHI SOCHTA THA
NA HOGA KLESH
HUM ITNA PYAR KARENGE.
JO SOCHA
SAB MILA
TUMHI MERI PRAN PRIYA HO.
JO SOCHA
SAB MILA
DO SE HUM TEEN
TEEN SE CHAR HUE HAIN .
JO SOCHA
SAB MILA
NA HI KOI KLESH
NA HI SANDEH
HAI SIRF NEH
HAI SIRF SNEH.
MERI CHIR SANGINI
TUMHI MERI PRIT
TUM HI MERI MEET
MERE JIWAN KA
TUM HI SANGEET.
RAJIV JAYASWAL
THIS POEM IS DEDICATED TO MY DEAR WIFE VANDANA JAYASWAL, WHO IS MY MOTIVATION AND INSPIRATION.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें