
एक डाय्ररी
पन्ने पुराने से,
मेरे बीते साल
जिनमें बंद हैं,
कितने सुख हैं
कितने दुख हैं,
प्यार हैं
रुसवाइयां हैं,
भीड़ हैं
तनहाईयाँ हैं,
शांति भी
लड़ाइया हैं,
मेरे बीते पल
उन ही में
बंद हैं |
मैं किसी पन्ने पे
बच्चा हूँ,
बड़ा होने लगा हूँ
मैं किसी पेज पर,
रो रहा हूँ
मैं कभी,
हंस रहा हूँ
मैं किसी पेज पर,
लिख रहा था
कुछ बातें
कभी मैं फर्श पर,
और कभी
घर की पुरानी मेज पर |
सब से पुरानी डायर्री
जो ढल गयी है,
लग रही बूढ़ी,
कुछ जगह से
गल गयी है,
उस में है बचपन मेरा |
डाय्ररी
जो कुछ पुरानी सी
दिखाई दे रही है,
उस में जवानी है,
उस में समाई
प्रेम की
कितनी कहानी है |
सब से युवा
जो दिख रही है,
वो मेरा बुढ़ापा
ढो रही है,
लग रही ताज़ा
नव नवेली सी,
वो ही
मेरे बीते समय
की याद करके
रो रही है |
अब हरेक पन्ना
डर रहा है,
कौन सा हो आख़िरी
पन्ना मेरी इस जिंदगी का,
ये सोच कर के
मुझ से पहले
मर रहा है,
सोचता हूँ
ऐसा कुछ लिख दूं
मैं अपना आख़िरी पन्ना
अमर कर दूं |
राजीव जायसवाल
८/०९/२०१०
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