बुधवार, 17 अगस्त 2011

जीवन सत्य |


कट कट कर कट रही घास

मन क्यों मेरा हुआ उदास,

सोचा ,

जीवन भी यूँ ही कट जाएगा,

कटा हुआ भाग कभी,

वापिस ना जुड़ पाएगा,

कट कट कर----------



उम्र भी घास तरह

कटती ही जाती है,

जीवन की डोर यूँ ही

कट कट, कट जाती है,

कल कल कर बहती है

नदिया की धार,

जल जो बह जाता है

घाट की देहरी छू के

वापिस ना आता है,

सागर के पास चला जाता है,

कट कट कर-----



भक भक कर भभक उठी

जंगल की आग,

जल जल कर कोयला हुए

पत्ते ओर घास,

जल गये जो पेड़

वो भी टूट के गिर जाते हैं,

फूल नहीं आते हैं

पत्ते नहीं आते हैं,

कट कट कर----



ढल ढल कर ढल जाता

यौवन अनमोल,

हर हर पल कम होता

जीवन् अनमोल,

थक थक कर थक जाती

मानव की देह,

लेकिन बढ़ता जाता

जीवन से नेह,

चल चल कर चल पड़ता

मंज़िल की ओर,

लेकिन कम होता ना

माया का शोर,

कट कट कर-----

राजीव जायसवाल

जीवन बहुत सुन्दर है, लेकिन मृत्यु भी निश्चित है , हर दिन जीवन के एक दिन को कम कर देता है | मेरी यह कविता इसी सत्य को बताने का प्रयास है |




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