बुधवार, 17 अगस्त 2011

मैं कुछ भी ना देख सकूँगा |


मेरा होना , ना होना

अर्थ कोई रखता है क्या

एक दिन जब शून्य बन

विलीन हो जाउँगा

किस किस को याद आउँगा

मुझ को ना कुछ पता चलेगा

मैं कुछ भी ना देख सकूँगा |



सब कुछ होगा

धरती, सूरज, चाँद, सितारे

लोग भी होंगे

बगिया में होगी बहार भी

बारिश होगी रिमझिम रिमझिम

मैं कुछ भी ना देख सकूँगा |



होगी होली, दीवाली भी

ऐसे ही संसार चलेगा

घर भी होगा, नगर भी होगा

मेरा अस्तित्व मगर ना होगा

कोई मुझ को याद करेगा

सपना समझ कोई भूलेगा भी

मैं कुछ भी ना देख सकूँगा |



सपने में मुझ को देखेंगे

मेरे अपने ही तरसेंगे

उन के आँसू ही बरसेंगे

वे ही मुझ को याद करेंगे

ऐसे ही दिन पर दिन बीतेंगे

मैं कुछ भी ना देख सकूँगा|

A DAY WOULD COME , WHEN WE WOULD NOT EXIST ON THIS PLANET EARTH. OUR FAMILY MEMBERS, OUR FRIENDS WOULD REMEMBER US AND OUR MEMORIES WOULD FADE AWAY WITH PASSING OF TIME.

THOUGH TO SOME, THIS POEM MAY APPEAR AS NEGATIVE FEELING BUT THE TRUTH OF LIFE SHOULD NOT BE FORGOTTEN.

RAJIV JAYASWAL

16/05/2010





























16/05.2010


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