गुरुवार, 14 जुलाई 2011

बस कविता मुझ को अर्पण करना |


जिस दिन मैं जाउँगा

उस दिन सूरज निकलेगा क्या

उस दिन भी फूल खिलेंगे क्या

उस दिन बदरा छाएँगे क्या

उस दिन पंछी गाएँगे क्या |



सब कुछ होगा उस दिन भी

ना देख सकूँगा मैं कुछ भी

मैं आँख मूंद सो जाउँगा

चिर निद्रा में सो जाउँगा

फिर जाग कभी ना पाउँगा |



मुझ से मिलने आएँगे सब

उन को ना देख सकूँगा तब

मुझ को तय्यार करेंगे सब

मैं अंतिम बार सजुंगा जब

शिंगार खुद ना कर पाउँगा

जब अंतिम यात्रा जाउँगा |



सब राम राम कह गाएँगे

कांधे पर मुझे उठाएँगे

मेरी तारीफ करेंगे सब

मुझ को सब याद करेंगे तब

मुझ को जब विदा करेंगे सब |



नश्वर शरीर जलाएँगे

घी, धूप, कपूर लगाएँगे

मैं पॅंचतत्व में जाउँगा

इस रूप कभी ना आउँगा

मेरी कविताएँ पढ़ना सब

ना भूल मुझे तुम जाना सब |

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चौथा करो या तेरहवी करना

वेद मंत्र, गीता ना पढ़ना

बस मेरी कविता गायन करना

ना ही मेरा तर्पण करना

बस कविता मुझ को अर्पण करना |



राजीव जायसवाल

१४/०७/२०११



















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