अंतर में होती जब पीड़ा
पीड़ा में सुख मिलता है ,
ये सुख मुझ को बहुत मिला है |
पीड़ा में सुख मिलता है ,
ये सुख मुझ को बहुत मिला है |
होता है जब मन एकाकी
मन ही मन को छलता है,
मैंने खुद को बहुत छला है |
पीड़ा का सुख पाया हमने
जलता दिया बुझाया हमने
तुम क्या जानो पीड हमारी
सबसे दर्द छुपाया हमने |
आंसू पी कर हँसना सीखा
सब के आगे हँसता
दिखा
तुम क्या जानो दर्द हमारा
सुख ने हम से किया किनारा |
तुम क्या जानो दर्द हमारा
सुख ने हम से किया किनारा |
राजीव
०८/०९/२०१२
०८/०९/२०१२
श्रेष्ट ब्लॅाग के लिये बधाई...राजीव जी....
जवाब देंहटाएंसंरचनाओं के यथार्थ-चेहरे उकेरने का कैनवस और तिलिस्म ..... पर धन्यवाद.....
जगजीवन जोत सिँह आनन्द
श्रेष्ट ब्लॅाग के लिये बधाई...राजीव जी....
जवाब देंहटाएंसंरचनाओं के यथार्थ-चेहरे उकेरने का कैनवस और तिलिस्म ..... पर धन्यवाद.....
जगजीवन जोत सिँह आनन्द