मेरा भी दर्द |
मेरा भी दर्द
तुम्हारे दर्द से
कमतर तो नहीं
मेरा भी हाल
तुम्हारे हाल से
बेहतर तो नहीं |
तुम्हारे दर्द को
हमदर्द का साया तो मिला
तुम्हारे हाल को
क्या हाल
कोई कहता तो मिला |
हम से पूछो कभी
किस तरह
चोट खाए हैं
जख्म कितने हैं
खुद भी
न जान पाए हैं |
राजीव
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें