बुधवार, 9 नवंबर 2011

आत्म कथन |

बहुत से लोग पूछते हैं की चार्टर्ड अकाउंटेंट जैसे नीरस प्रोफेशन में होकर कविता लेखन कैसे कर लेते हो, मेरा जवाब यही होता है की सी . मेरा व्यवसाय है और लेखन मेरा शौक | जीवन में बहुत से उतार चढ़ाव आए, सोचता हूँ , अगर अपने मन के भावों को कविता का रूप ना दिया होता , तो जीवन के द्वंद अंतर को झकझोर देते | मन का धरातल , रेगिस्तान में बदल जाता, अगर अंतर में कविता रूपी झरना ना बह रहा होता |

छह भाई बहनों में सब से बड़ा, दादी के दुलार, पिता के अनुशासन , माता के धीर गंभीर व्यक्तित्व के बीच एक बड़े परिवार में बचपन बीता |दिल्ली जैसी जगह पर एक बहुत बड़ा घर, एक बगीचा और बगीचे में मेहन्दी, नीम, कनेर , इमली यूकेलिप्टस के बड़े बड़े पेड़ | बारिश के बाद पेड़ों पर चमकती पानी की बूँदें, आज भी मेरे जेहन में अंकित हैं |

     पहली कविता स्कूल में अपनी टीचर पर लिखी थी, समय के साथ साथ उम्र बढ़ी, प्रेम का पौधा अंकुरित हुआ, प्रणय कविताओं का जन्म हुआ |आध्यात्मिकता में रूचि प्रारंभ से ही थी , मेरे लिए परमात्मा कोई मूर्ति , अवतार , पीर, पैगंबर ना होकर एक सर्व व्यापक सत्ता रहा है | मेरकविताएँ उसी प्रभु का गुण गान करती हैं |समाज की रूढियों, अंध विश्वासों सामाजिक समस्याओं का भी मेरी कविताओं में चित्रण हुआ है |
       फेसबुक जैसी सोशल साइट पर आकर मेरी काव्यत्मकता का विस्तार हुआ , सराहना आलोचना दोनों मिलीं |बहुत सी कविताओं का सृजन फेस बुक पर ही हुआ | मेरी इस काव्य यात्रा में मेरी जीवन साथी वंदना का भी बहुत सहयोग रहा | मेरे फेस बुक मित्रों ने भी मेरे उत्साह को बढ़ाया , मैं उन सभी का हृदय से आभारी हूँ |

राजीव जायसवाल
०९/११/२०११
         

2 टिप्‍पणियां:

  1. आप ऐसे ही लिखते रहें .....
    बहुत -बहुत शुभकानाएं

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  2. गुरुजी,आपके कविता मे अध्यात्म और प्रेम एक साथ देखने को मिलता है...........

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