शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

ऐसे मत जी |

ऐसे
मत जी
विष घूँट
मत पी |
अमृत सागर
अंतर तेरे
मंथन कर
भले का
बुरे का
चिंतन कर |

ऐसा कर
हलाहल
अमृत में बदल
पाप वो
मन को जो
दूषित करे
पुण्य वो
मन को जो
सुशोभित करे |

हर पल
सोता क्यों
हर पल
रोता क्यों
अब जाग
जो सोया
सो गए
उस के भाग |

आराम
मत कर
कर्म कर
कर्म को
निज धर्म कर
उठ जा
आकाश को
छू ले
सूरज सज़ा
मस्तक पर
तारों की
माला पिरो ले |

कर प्रहार
मुष्ट मार
पर्वत को तोड़
नादिया को मोड़
आकाश के
सीने को छेद
पाताल से
पानी निकाल |

ना पाप कर
स्वयं पर
विश्वास कर
उठ , हो खड़ा
प्रहार कर
पाप, अत्याचार पर
ना रुक
ना झुक
ना मर
ना डर
जो करना है
वो कर
इतिहास में
हो जा अमर |

राजीव
०३/११/२०११

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