मैं तो समझा था
जिस को ढूंढा था
मिल गया वो ही ,
मैं तो समझा था
हमराज मिल गया कोई ,
मेरी नादानी
किसे राजदार
कह बैठा ,
दो मुलाकात में
क्यूँ उस को यार
कह बैठा |
एक बदरी सी
एक बदरी सी
मेरे आसमां पे
छाइ थी ,
एक अपनी सी छवि
मन को मेरे
भाइ थी ,
क्या पता था
मेरे मन का
वो छलावा था ,
क्या पता था
वो घडी
घडी भर को आइ थी |
राजीव
१०/०७/२०१२
१०/०७/२०१२
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