रविवार, 5 अगस्त 2012


भीषण ताप
जेठ की गर्मी ,
तपता सूरज
उडती धूल  |

बरसो हरि
मेघ बन बरसो ,
ताप मिटाओ
पाप मिटाओ ,
संशय की 
सब धूल हटाओ |

   मन  पंछी के 
  पंख जल रहे ,
हरि नाम बिन
तन पिघल रहे  ,
बरसो हरि 
दम निकल रहे |

ना कहीं छाया
धूप ही धूप 
मनवा सागर
गया है सूख
जल के बिना
जल रहा रूप
बरसो हरि 
मिटाओ धूप |

राजीव 
१६/०६/२०१२
आसाड़ु तपंदा तिसु लगै हरि नाहु जिंना पासि आसाड़ु सुहंदा तिसु लगै जिसु मनि हरि चरण निवास ॥५॥








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