भीषण ताप
जेठ की गर्मी ,
तपता सूरज
उडती धूल |
बरसो हरि
मेघ बन बरसो ,
ताप मिटाओ
पाप मिटाओ ,
संशय की
सब धूल हटाओ |
मन पंछी के
पंख जल रहे ,
हरि नाम बिन
तन पिघल रहे ,
बरसो हरि
दम निकल रहे |
ना कहीं छाया
धूप ही धूप
मनवा सागर
गया है सूख
जल के बिना
जल रहा रूप
बरसो हरि
मिटाओ धूप |
राजीव
१६/०६/२०१२
आसाड़ु तपंदा तिसु लगै हरि नाहु न जिंना पासि ॥ आसाड़ु सुहंदा तिसु लगै जिसु मनि हरि चरण निवास ॥५॥
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