मैं
क्षणिक सा हूँ
ओस की ज्यों बूँद
पत्तों पर,
मोती सा दिखता हूँ
लेकिन
बरसात में बरसा ज्यों पानी
मैं
मैं
धरा पर हूँ |
मैं
पथिक सा हूँ
घर में रहता हूँ
मगर
घर का मलिक मैं नहीं हूँ
मैं
चकित सा हूँ |
मैं
व्यथित सा हूँ
खुश नज़र आता हूँ
लेकिन
खुश नहीं हूँ मैं
मैं
मैं
ना जाने क्यों
भ्रमित सा हूँ |
राजीव जायसवाल
१५/०१/२०१२
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