जल में, थल में
काल में, पल में
धरती में, समुद्र में
नर्क में , स्वर्ग में
हिंद में, अरब में
राग में , मल्हार में
तोप में, तलवार में
पूजा में, नमाज़ में
ध्यान में, सहवास में
मैं ही मैं , बस मैं ही मैं |
सागर में, गागर में
आकाश में, भवसागर में
अर्थ में , व्यर्थ में
स्वर्ग में, नर्क में
हँसी में, रुदन में
बेड़ी में, आभूषण में
सुगंध में, दुर्गंध में
पतझड़ में, बसंत में
मैं ही मैं , बस मैं ही मैं |
राख में, खाक में
दूर में, पास में
चोर में, संत में
पतझड़ में , बसंत में
रोग में, भोग में
सत्य में, ढोंग में
प्यार में, प्रहार में
विचार में, विकार में
मैं ही मैं , बस मैं ही मैं |
चींटी में, हाथी में
शत्रु में, साथी में
माता में, पिता में
सेज में, चिता में
रोग में, सोग में
भूख में, भोज में
जेल में, रेल में
मेले में, ठेले में
घर में, बाज़ार में
पैदल में, कार में
मंदिर में, गुरुद्वारे में
दुखी में, बेचारे में
मैं ही मैं , बस मैं ही मैं |
उदय में, अस्त में
जीत में, पस्त में
खाली में, व्यस्त में
निर्मित में, ध्वस्त में
चुप में, वाचाल में
आग में, भूचाल में
दिवस में , रात्रि में
युद्ध में , शांति में
हवन में, होम में
पाताल में, व्योम में
मैं ही मैं , बस मैं ही मैं |
राजीव जायसवाल
०८/०१/२०१२
वाह ...बहुत ही खूबसूरत और अर्थपूर्ण रचना .
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