जब
रात बहुत गहराती है
जब
बात , मौन हो जाती है
जब
नज़रों से तुम कहती हो
जब
तुम , मुझ में खो जाती हो
जब
बिन सोए , सो जाती हो
जब
मादकता इठलाती है
जब
सांस, सांस मिल जाती है
जब
दिल धक धक कर चलता है
जब
कामुकता , मुस्काती है
जब
देह, देह से मिलती है
जब
आग , ज्वलित हो जाती है
जब
तुम, मुझ में खो जाती हो
जब
तुम , मेरी हो जाती हो
तब
इंद्रधनुष छा जाता है
तब
सब कुछ ज्यों खो जाता है
तब
ज्वाला देह, काला मेघ बन जाती है |
तब
बिन समाधि के, ज्यों समाधि लग जाती है |
राजीव जायसवाल
१४/०१/२०१२
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