गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

जागो रे जिन जागना , अब जागन की बार |

जानता हूँ
जिंदगी फानी है
जानता हूँ
एक दिन आनी है
जानता हूँ
ये बहता पानी है
जानता हूँ
फर्र उड़ जानी है |

जानता हूँ
शरीर छाया है
जानता हूँ
चहुँ दिश माया है
जानता हूँ
सदा ना रहना है
जानता हूँ
सब यहीं रहना है |

जानता हूँ
सभी को जाना है
जानता हूँ
फिर नहीं आना है
जानता हूँ
देह ने ढलना है
जानता हूँ
आग में जलना है |

किस लिए
फिर यूँ भागा फिरता हूँ
किस लिए
कामिनी पे मरता हूँ
किस लिए
खुद पे ही इतराता हूँ
किस लिए
जाग नहीं पाता हूँ |

राजीव
१३/०४/२०१२
जागो रे
जिन जागना
अब जागन की बार
फिर क्या जागे नानका
जब छोड़ चला संसार |

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