ईश्वर में सच्ची आस्था हो तो सब कुछ संभव होता है | जीवन में कई बार ऐसे प्रसंग देखने में आते हैं, जब हम हैरान रह जाते हैं |
मेरा आर्य समाजी परिवार में जन्म होने के कारण देवी ,देवता और मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं था और मैं निराकार ईश्वर के अस्तित्व पर ही विस्वास करता था | मेरी पत्नी वंदना , सनातनी परिवार से हैं , और देवी, देवताओं और मूर्ति पूजा में विश्वास करती है | मैने भी कभी उन के विस्वास का विरोध नहीं किया | घर में ही एक छोटा सा मंदिर भी है, लेकिन मैं ध्यान ही करता था |
यह बात करीब दस वर्ष पूर्व की है | मैं और वंदना रात को खाने के बाद अपनी सोसाइटी में घूम रहे थे, की वंदना ने माता वैष्णो देवी जाने की इच्छा बताई| मैने भी टालते हुए कह दिया की -- लोग कहते हैं, जब माँ बुलाती हैं, तभी जाना हो पता है, जब तुम्हारा बुलावा आएगा, तभी जा पाओगी | श्रीमती जी, यह बात सुन कर चुप हो गई |
अगले दिन मैं अपने ऑफीस मैं था, की मेरे दोस्त डॉक्टर विजय लेखी का फोन आया | डॉक्टर लेखी अस्थि विशेषग्य थे और अब इस दुनिया में नहीं हैं | डॉक्टर लेखी ने पहले हाल चाल पूछा और फिर बोले-- क्या तुम को माता वैष्णो देवी चलना है ?
मैं यह सुन कर हैरान रह गया और मुझे वंदना के साथ पिछली रात को अपना कहा यह वाक्य याद आ गया की जब माता का बुलावा आता है, तभी जाना हो पता है | मैने डॉक्टर से पूछा की कब जाना है , तो वे बोले--- कल सुबह ही जाना है, और अभी जवाब दो, कार की , होटेल की बुकिंग हो चुकी है | ,,मैने हैरान होते हुए , जाने के लिए हाँ कर दी |
मैने फिर वंदना को फोन किया और अगले दिन वैष्णो देवी जाने की बात बताई तो वो भी खुशी से हैरान हो गयी |
अगले दिन हम लोग वैष्णो देवी के लिए रवाना हो गये, कार , होटेल सब कुछ बुक थे, मुझे कुछ भी नहीं करना पड़ा |डॉक्टर लेखी ने सब इंतजाम कर रखा था | हम लोग की वैष्णो देवी यात्रा बहुत अच्छी रही|
हम लोग हैरान थे की एक रात पहले मैं और वंदना , जिस माता की इच्छा की बात हम लोग एक रात पहले कर रहे थे वो इच्छा अगले दिन ही सार्थक हो गयी |
राजीव जायसवाल
मेरा आर्य समाजी परिवार में जन्म होने के कारण देवी ,देवता और मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं था और मैं निराकार ईश्वर के अस्तित्व पर ही विस्वास करता था | मेरी पत्नी वंदना , सनातनी परिवार से हैं , और देवी, देवताओं और मूर्ति पूजा में विश्वास करती है | मैने भी कभी उन के विस्वास का विरोध नहीं किया | घर में ही एक छोटा सा मंदिर भी है, लेकिन मैं ध्यान ही करता था |
यह बात करीब दस वर्ष पूर्व की है | मैं और वंदना रात को खाने के बाद अपनी सोसाइटी में घूम रहे थे, की वंदना ने माता वैष्णो देवी जाने की इच्छा बताई| मैने भी टालते हुए कह दिया की -- लोग कहते हैं, जब माँ बुलाती हैं, तभी जाना हो पता है, जब तुम्हारा बुलावा आएगा, तभी जा पाओगी | श्रीमती जी, यह बात सुन कर चुप हो गई |
अगले दिन मैं अपने ऑफीस मैं था, की मेरे दोस्त डॉक्टर विजय लेखी का फोन आया | डॉक्टर लेखी अस्थि विशेषग्य थे और अब इस दुनिया में नहीं हैं | डॉक्टर लेखी ने पहले हाल चाल पूछा और फिर बोले-- क्या तुम को माता वैष्णो देवी चलना है ?
मैं यह सुन कर हैरान रह गया और मुझे वंदना के साथ पिछली रात को अपना कहा यह वाक्य याद आ गया की जब माता का बुलावा आता है, तभी जाना हो पता है | मैने डॉक्टर से पूछा की कब जाना है , तो वे बोले--- कल सुबह ही जाना है, और अभी जवाब दो, कार की , होटेल की बुकिंग हो चुकी है | ,,मैने हैरान होते हुए , जाने के लिए हाँ कर दी |
मैने फिर वंदना को फोन किया और अगले दिन वैष्णो देवी जाने की बात बताई तो वो भी खुशी से हैरान हो गयी |
अगले दिन हम लोग वैष्णो देवी के लिए रवाना हो गये, कार , होटेल सब कुछ बुक थे, मुझे कुछ भी नहीं करना पड़ा |डॉक्टर लेखी ने सब इंतजाम कर रखा था | हम लोग की वैष्णो देवी यात्रा बहुत अच्छी रही|
हम लोग हैरान थे की एक रात पहले मैं और वंदना , जिस माता की इच्छा की बात हम लोग एक रात पहले कर रहे थे वो इच्छा अगले दिन ही सार्थक हो गयी |
राजीव जायसवाल
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